Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८] ७ - શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष देवं गुरुं च धम्मं जहट्टियं वरविवेइणो लिंति । देवा गुरुणो धम्मा विवेयविलयाण सवे वि ॥४॥ गुणजुत्तगणहराणं गुरुगुणरहियाण आयरियसहो । वट्टइ जह हरिसद्दो देविंदे दद्दरे य तहा ॥५॥ जह विट्ठी विय भद्दा अंगारो मंगलो विसं महुरं । तह विवरीयायरणा आयरिया के वि भन्नति ॥६॥ एगो कह वि पयासइ जिणागम नासविंति पुण बहवे । ता कह तत्थ पहुच्चइ घडमाणो फोडमाणाणं ॥७॥ हिंडयसिद्धतकरी विवेयवणमदणो जहिं भमइ । तहिं कह जाणंति जणा जिणागमं सुगुरुपरिहोणा ॥ ८ ॥ पासत्थसत्थनडिया कुबोहजडिया विवेयपरिवडिया । कुग्गहगइंदचडिया जीवा भवसायरे पडिया ॥ ९ ॥ अच्छरियं अच्छरियं आगमविहिरयणि विज्जमाणे वि । मिच्छत्तमुच्छियमणा अविहिवराडिं जडा लिंति ॥ १०॥ बहुयपसिद्धिगुणेसुइयराणं आयरो जहा होइ । न तहा परमगुणेसुंगयाणुगामी जणो जेण ॥ ११ ॥ कमलवणं पि हु वियसइ उसिणकरे मउलियइ अमयकिरणे । अहवा जडाण संगो सुविवेयविणासणो होइ ।। १२ ॥ सुविवेयरयणहरणो कसायकलसाण संगमो नियमा । पाडोसिए पलित्ते किं डझइ अप्पणो न गिहं ॥ १३ ॥ सुयनाणं मुत्तण निययायरणं न साहए सिद्धिं । कि होइ परित्ताणं भमुहाहिं गएहिं नयणेहिं ॥ १४ ॥ निकारण पि के वि हु अववायपयं बहुं पयासिति । गंगं गयं कह त य 'केरडियं मारियं न पुणो ॥१५॥ इयरभणियंमि तोसो जिणिंदवयणमि जह (ह) पुण पोसो। तेसिं विसं पि अमयं अमयं विसं हा (ह) महामोहो ॥ १६ ॥ दिणयरकरनियरं पिव जिणागमं तमहरं पि तिमिरकर । घूयस्स व जाह जए ताह (ह) फुडं वपुरि हा! मोहो ॥१७॥ १विषम्। For Private And Personal Use Only

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