Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 83] www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir વિવેકકુલકસ્ लोइयमिच्छत्तविस आगममंतेण नासइ असेस | कोगुत्तरं तु विसमं न पहू चक्कं सगुत्तस्स ॥ १८ ॥ विसय महाविघारिय सिद्धंतसुहारसेण जीवंति । जिणवयणामयसित्ता विघारिया ते कहाँ हुंति ? ॥ १९॥ ता किं दसमच्छेरं अह दूसमदोसगरुयमाह । जेण जिणमग्गलग्गा हा हीलिजति इयरेहिं ॥ २० ॥ न कुणति सयसम्मं जिणधम्मं उवहसंति कुणमाणं । जह अपना विरंडा म हवउ अन्ना विहु अविवो ॥ २१ ॥ एग्गो करेइ धम्मं बीओ पुण मच्छरेण तर्हि दुक्खी । अग्गिमसिरंमि भारो झिज्जर पच्छट्टिओ चुज्जं ॥ २२ ॥ लग्गा धम्मे मूढा वयणिहिं भांति जिणधम्मं । सच्चमिणं कन्नाडी गावी वासेड़ मरहट्ठे ॥ २३ ॥ जे अन्नधम्मलग्गा का जियवयणे वियारणा तेसिं । अंते उरस्स सारा किं जागइ पोलिपाहरिओ ॥ २४ ॥ अन्नत्थ भमइ मूढा कज्जं अन्नस्थ काथ असे | are मालओ जह खित्तं अन्नत्थ अइदूरं ॥ २५ ॥ अन भइ सुत्थी साहीणे वि हु विवेयवरसुक्खे | ददीवहत्य मूढोअरिंग गवेसेइ ॥ २६ ॥ अवराहकारि अने भिति अविवेयलोय अन्नेसिं । सूयरिहिं वल भक्खिय पिट्टिज्जइ पड्डगाण मुह ॥ २७ ॥ दिति उवाइयमेगे जीवियकमि मच्चको अन्ने । गुरु मोहमूढचित्ता समरससित्ता न एगस्स ॥ २८ ॥ धम्मियजणाण चित्तं पासत्थाय कसाय अग्गीए । उत्तावि पि कण व किं चयइ वन्नपरिमाणं ॥ २९ ॥ जइ विहु दुहत्तचित्तो उत्तमसत्तो तहा वि जिणभत्तो । भगोfa area नहु सरिसो इयरकलसाणं ॥ ३० ॥ जह विन चरित्तसज्जो सुविसुद्धपवगो सुकयकज्जो । दो मलगंगो बिहु होइ पईवो जणे पुज्जो ॥ ३१ ॥ इको विवेयदीवो सुविसुद्धं जिणपरं पयासेई । तरहा पन्नवियन्वो सो चेव सया विसरियव्वो । ३२ ॥ આ ‘વિવેકકુલક' પાટણુના ખેતરવસીના નં ૬ પૃ. ૧૧૫થી ૧૧૮ ) પ્રતિ ઉપરથી ઉતારીને અહીં આપ્યું છે. For Private And Personal Use Only [ પાડાના તાડપત્રના ભડારતી (૩૦

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