Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 05
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - || अहम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितिनुं मासिक मुखपत्र श्री जैन सत्य प्रकाश जेशिंगभाईकी वाडी : घीकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात) वर्ष १२ ॥ वि . २००३ : पीमि. स. २४७३ : ७. स. १४४७ ॥ क्रमांक वैशाम पह १० : अपार : १५भा में ॥ १४९ श्रीजिनप्रभमूरिकृतम् धर्माधर्मविचारकुलकम् । सं०-पूज्य मुनिमहाराज श्री कांतिविजयजी अह जण निसुणिज्जउ कन्नु धरिजउ धम्माधम्म-विचार फुड्ड । जिम जाणिउ जिणपहु मिल्हिउ कुप्पहु पावउ सिवसुहअमय फुडु ॥ १ ॥ एउ सव्वहं धम्महं परमठाणु जं दीजइ जीवहं अभयदाणु । पुढवाइजीवनवभेय हुंति जे रक्खई सिवसुहु ते लहंति ॥ २ ॥ जे जंपई हिउ-पिउ-सच्च-वयणु ते लहई अणोवमु धम्मरयणु । परधणु न लेइ जो धम्मवंतु सो होइ सिद्धिरमणीइ कंतु ॥ ३ ॥ जो घरइ अट्ठारस-भेउ बंभु सो चेव सूरु सिवु 'विहु बंभु । नवभेउ परिग्गहु परिहरेइ कोहाइ अभितरु निग्गहेइ ॥ ४ ॥ अप्पणह पीड जेणेह होइ तं परह न कीजइ जीवलोइ । परिहरई अट्ठारसपावठाण मिल्हेविणु अट्टई रुद्दझाण ॥ ५ ॥ जे सव्वहा वि अह देसओ वि भवसायरु तरई अविग्घु ते वि । महु-मज्ज-मंस-मक्खण-अभक्ख नहु भक्खई जीवदयाइ-दक्ख ॥६॥ पंचुंबरि-वइंगण-सूरणाई तह आमई गोरसि बिदल जाई। जो रयणीभोअणु परिहरेइ तसु जीवदयाइ मुक्खु होइ ॥ ७ ॥ जो रयणीभोअणु पच्चक्खाइ तसु अद्धजम्मु उपवासि जाइ । जो दिवसरत्ति खायंतु ठाइ सो सिंगपुंछविणु पसूउ भाइ ॥ ८ ॥ जहिं दिवसरत्ति न विसेसु सस्थि तहिं मूढ धम्मलेसो वि नस्थि । जो दिवस मुत्त भुंजइ निसाइ सो हारह कोडि वराडियाइ॥ ९॥ . १ विण्हु प्रत्यन्तरे । For Private And Personal Use Only

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