Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'दीवालीकल्प' की एक प्राचीन सचित्र प्रति लेखक - श्रीयुत भंवरलालजी नाहटा भारतीय चित्रकलामें जैन सचित्र प्रतियोंका स्थान अपूर्व है । विविध जैन भण्डारोंमें प्राप्य सचित्र ग्रन्थोंकी संख्या हजारों पर है, जिनमें पहला स्थान कल्पसूत्र और कालकाचार्यकथाको प्रतियोंका है। इन दोनों ग्रंथोंके अतिरिक्त उत्तराध्ययन, ज्ञातासूत्र, क्षेत्रसमासादि एवं श्रीपालरास, चंदरास, सिंहलपुत प्रियमेलकरास, चंदनमलयागिरि चौपई आदिको हस्तलिखित सचित्र प्रतियां भी देखने में आई हैं । श्रीजिनसुन्दरसूरिकृत दीवालीकल्प एक आकर्षक और रोचक ऐतिहासिक ग्रंथ है । इसकी एक प्राचीन और सुन्दर अक्षरोंमें लिखी हुई १४ पत्रकी प्रति बीकानेरके श्रीयुक्त जौहरी मोतीचंदजी खजानचीके संग्रहमें है। इसमें २१ चित्र हैं जिनमें लाल व पीले रंगका प्राधान्य है। ये चित्र लगभग ५०० वर्ष प्राचीन होनेके साथ साथ ऐतिहासिक विषयके होनेके कारण महत्त्वपूर्ण भी हैं । इस ग्रन्थकी प्रशस्ति देनेके पश्चात् चित्रोंकी सूची दी जाती है । सूचीमें जो नाम हैं वे मूल प्रति पर ही चित्रों के पास हॉसिये पर लिखे हुए हैं। " इति श्रीतपागच्छाधिराज श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्य भट्टारक प्रभु श्रीजिनसुंदरसूरिकृतः ॥छः॥ श्रीदीपालिकाकल्पः समाप्तं ॥॥१॥ संवत् १५२३ वर्षे ॥म. धना लिखितं ॥" इसके बाद पीछेसे भिन्न अक्षरों द्वारा इस प्रकार लिखा है:" तपागणे पंडित श्रीवरसिंगषिगणिशिष्य गणि शुभविजय ग्रं० ४३४" चित्रोंकी सूचि (१) श्रीसुहस्तिसूरि संप्रति राजा (१२) दत्तराज्याभिषेक (२) राजा पुण्यपालस्वप्नानि (१३) वैताढ्य गंगासिन्धु मध्ये मनुष्य बीज (३) श्रीवीरराजा पुण्यपालस्वप्नानि कथा (१४) सप्तकुलगरा (४) राजा पूर्ण नैमित्तिक (१५) श्रीवीरमोक्षः (५) श्रीसिद्धसेनसूरि राजा विक्रमादित्य (१६) श्रीगौतमकेवलज्ञानम् (६) श्री महावीर राजा आम (१७) राजा नंदिवर्द्धन सुदर्शन भा बीज (७) पांच पांडव एक कलिकाल (८) श्री हेमाचार्य राजा कुमारपाल (१८) श्रीसुव्रताचार्यस्य शिष्य (९) यशो गुरो कल्किजन्मविचारणा (१९) विष्णुकुमार ऋषि मंत्रि नमुचिः (१०) कलंकी देशसाधना (२०) श्रीवीरप्रासाद स्नात्रोत्सवः (११) कलंकी इन्द्रेण हतः (२१) श्रीगौतम श्रीवीरपरिवारः For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36