Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 3] છવકે કર્મબન્ધ ઔર મોક્ષકા અનાદિત્ય विश्लेषण परीक्षण और प्रयोग. सोहनलालजीने अपने लेखमें प्रयत्न किया जरूर है, पर वह सफल नहीं हुआ। कारण जैन दर्शनको तर्कणा उन्होंने ठीक नहीं समझी । उनको जवाब इस रूपमें दिया जा सकता है। १. जीव अपने रूपमें असंख्य प्रदेशात्मक एक और अखंड रूप होता हुआ भी संयोगी होनेसे छोटे बड़े क्षेत्रमें व्याप्त हो, रहता है। उस पर रबर के फीतेको मिसाल लागु नहीं होती, क्योंकि रबड़ टूटता है, अणु परमाणु रूपमें बिखर भी जाता है। जीव ऐसे न टूटता है न बिखरता ही है। कर्मके संयोगसे उसमें उस ढंगकी व्याप्ति पैदा होती है, जिससे कि वह छोटे बड़े क्षेत्रको घेरता है। २. संयोग प्रवाह रूपसे अनादि हो सकता है । जीव पुद्गुल भिन्न २ द्रव्य है, और असंकीर्ण भावसे दोनों का संयोग होता है। संयोगकी हालतमें भी उनका असली रूप मिटता नहीं। प्रवाह रूपसे अनादि संयोग कारणपरक होनेसे कारणों के अभावमें टूट भी जाता है। ३. सारे मुक्त जीवोंकी मुक्ति होनेकी अपेक्षासे आदि है, पर कालकी विचारणामें वह " आदि" काल अनादि अनंत होनेसे अनादि अनंततासे आक्रान्त हो जाती है । कालके अनादित्वको केवल मौखिक प्रतिज्ञा नहीं है। अनादि अनंतत्वकी विचारणा कालद्रव्यको लक्ष्यमें रखकर ही यहां को गई है। ४. मुक्त होनेकी तिथि अवश्य होती है, पर वह कालके अनादि अनंतत्वसे आक्रांत है। ५. बंध और मुक्ति दोनों प्रवाहरूपसे अनादि कालसे प्रस्तुत है, और अनन्त काल तक होते रहेंगे । अनादि अनंतकी प्रतिज्ञा व्यक्तिगत नहीं प्रवाह रूपसे की गई है। ६. अवस्थाकी अपेक्षासे अनादि अंतवाला होता है, और आदि अनंततावाला होता है। यह सैद्धान्तिक मूल नहीं, समझकी भूल है। ७. जैन दर्शन में किसी भी सद्भूत द्रव्यका प्रागभाव वा प्रध्वंसाभाव होता ही नहीं। हां सद्भूत द्रव्यके पर्यायोंका प्रागभाव प्रध्वंसाभाव होता ही है। संसारी और मुक्त यह जीवकी दो मोटी अवस्थाएं हैं। इनमें दोनों क्या चारोंही अभाव अपेक्षासे घटित होते हैं। ८. समस्त मुक्त जीवोंकी मुक्त होनेको अपेक्षामें आदि है जरूर, पर कालापेक्षया इस आदिकी आदि नहीं है इसलिए जैन दर्शनशास्त्री मुक्तिके प्रवाहको अनादि कहते हैं। इन्हीं आठ मुद्दोंको अधिक स्पष्टतासे बताया जाता है। (क्रमशः) For Private And Personal Use Only

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