Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [७५ કંઇક શંખેશ્વર સાહિત્ય ___ (३) संखेसर स्तवन मंदिर-वर्णन-गर्भित श्रीउत्तमकृत (सं. १८४९) सरसती, करो सुपसाय, नर्मू आनंदे रे, . प्रभुना गुण गातांह पाप निकंदे रे । सुंदर सूरत एह संखेसरनी रे, चोमुष प्रतिमा च्यार आदीसरनी रे ॥१॥ पंच मेरुने भाव पूजा करीई रे, चोमुष ए पूर्जत चिहुं गति हरीई रे। समवसरणके माहे आप विराज्या रे, चउमुष टाली मर्म, धर्म प्रकासे रे ॥२॥ बली ऋषमानन देव, चंद्राननजी रे, वारिषेण, वर्द्धमान, नंदीसरजी रे। फिर चोमुष वंदंत, पंच वेलां करी रे, मानु वीसे वेहरमांन प्रणम्या हित धरी रे ॥३॥ अतीतानागत वर्तमान जिन आनंदो रे, गणधर गोतम सांम, पुंडरीक वंदो रे । तपगच्छ धर्मसूरिंद चरण नगीना रे, पगल्या परतरगच्छ दादाजीना रे ॥ ४ ॥ दादा दोलित देव करे गहगाटे रे, सेवकने पे सुख वाटे घाटे रे। ठाम ठामनो संघ आवी वंदे रे, लहे सुष संपति कोड जननां वृंदे रे ॥५॥ संवत अठारा मांहे गुणपचासे रे, शुदि सप्तमी वेसाप बुध उलासे रे। करीय प्रतिष्ठा सार सुभ मोरतो रे, नयर प्रतापगढ मांहे आनंद वरती रे॥६॥ सिवनो तीर्थ सुठांम दीपेसरजी रे, पासे प्रभु परमेस संषेसरजी रे। न. न. २. २. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36