Book Title: Jain Satyaprakash 1940 01 02 SrNo 54 55 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ કમાંશ પ૩-૧૪ [भासि पत्र] . [वर्ष ५ : ४ ५-६ ॥ श्री विहरमाणतीर्थपति स्तोत्रम् ॥ कर्ता-आचार्य महाराज श्री विजयपनमूरिजी (आर्यावृत्तम् ) पणमिय थंभणपाम, कामदयं णेमिसूरिपयकमलं । सिरिविहरमाणथुत्तं, रएमि जिणतित्थकल्लाणं ॥१॥ सारयससहरकित्ती, विहरते वरमहाविदेहम्मि । तित्थवई गुणवंते, वंदे विणएणमुल्लासा ॥२॥ सिरिसीमंधरसामी, जंबुद्दीवे महाविदेहम्मि । वरपुक्खलावईए, पुंडरगिणिणामणयरीए ॥३॥ मिजंस मञ्चईए, कंचणतणुवसहलंछणा तणया । कुंथुजिणारपहूणं, अंतरसमयम्मि संमाया ॥४॥ पणसयसरुञ्चदेहा, वरलक्खणरुप्पिणी विहियलग्गा। तह वीसलक्खपुच-प्पमाणसमया कुमारत्ते ॥५॥ तेसट्ठिलक्खपुत्र-प्पमाणरउजाहिवत्तसिरिसमया । मुणिसुव्वयापरणं, णमिप्पहूणंतरम्मि तहा ।।६।। गहियविमलचरित्ता, चउनाणी सिखवगसे ढीए । णासियघाइच उक्का, साहियमवण्णुसळभावा ।।७।। दसलक्ख केवलिमुणो, सयकोडी समणसमणपरिवारा। पडिबोहंते भव्वे, जीवणपज्जंतसमयम्मि ॥८॥ किच्चा जोगनिरोहं, खविऊणमघाइसेसकम्माई। एगंतियमच्चंतियं, मुत्तिसुई भावि समय म्मि ॥९॥ पाविस्संति पहजे, सत्तममम जियतरे . समए । ते मोमंधरदेवा, मंतिदया हातु भवाणं ॥१०॥ ( अपूर्ण) For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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