Book Title: Jain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 177
________________ जैन आगम साहित्य लेखक:-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा, बोकानेर. जैनोंका सबसे प्राचीन साहित्य आगमग्रन्थ हैं । तत्कालीन (दार्शनिक, ऐतिहासिक, व्यावहारिक ) संस्कृति जानने के लिये ये ग्रन्थ बडे ही महत्वके हैं पर खेद है कि इन ग्रंथोपर नवीन-वैज्ञानिक शैलिसे अभीतक विशेष आलोचना नहीं हुई। कतिपय पाश्चात्य विद्वानों और पं. बेचरदासजी आदिने कई वर्ष पूर्व इस संबंधमें कुछ निबंध लिखे थे, पर वह कार्य विशेष आगे नहीं बढा। इसी लिये विविध दृष्टिकोणसे जैन आगमोंका जो असाधारण महत्व है वह जैन व जैनेतर जनता व विद्वानोंमें प्रकाशित नहीं हो पाया। कई वर्षोंसे मेरा विचार था कि आगमाभ्यासी विद्वान मुनियोंका ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाय, ताकि इस परमावश्यक कार्यमें प्रगति होकर जैन आगम संबंधी अनेक नवीन ज्ञातव्य प्रगट हों। इधर कुछ समयसे मैंने जैन आगम संबंधी कुछ अन्वेषण करना प्रारंभ कर दिया है, पर मेरा एतद्विषयक ज्ञान अत्यल्य है और सहायक भी जैसे अनुभवी चाहिये नहीं मिले अतः वह कार्य विशेष शीघ्रताले सुसंपन्न होना कठिनसा है, अतएव आज केवल आगमोंको संख्या संबंधी कुछ विचार कर कई प्रश्न आगमरहस्यघेत्ता विद्वानोंके समक्ष रखता हूं। आशा है वे इस संबंध विशेष अन्वेषण-आलोचना शीघ्र ही प्रकाशित करेंगे। अंगसाहित्यमें आगमोंके उल्लेख सबसे प्राचीन अंगसाहित्यमें, जैनागम कितने व कौन कौनसे थे, विशेष विचारणा नहीं पाई जाती। पर 'समवायांग' में केवल एकादश अंगोंके नाम व उनका विषयविवरण पाया जाता है। स्थानांगसूत्र के १० वें अध्ययनमें १०-१० अध्ययनवाले १० ग्रंोंके ( अध्ययन नाम--संख्या सह) नाम पाये जाते हैं। ऐतिहासिक दृष्टिसे यह संबन्ध विशेष महत्व रखता है अत उन १० ग्रंथोंके नाम व अध्ययनसंख्या (स्थानांगसूत्र पृ० ५०५ से ५१३ से) नीचे लिखी जाती है २: १ समवायांगसूत्र (मुद्रित, पृ० १२३) अनर्गत उक्त विषयविवरणानुसार वर्तमान प्रश्नव्याकरण शास्त्रोक्त रीत्या संपूर्ण नहीं ज्ञात होता। २ इसके अतिरिक्त अंगसाहित्यमें अन्य कहीं कोई उल्लेख हो तो अनुभवी प्रगट करें, व एक ग्रंथमें अन्य ग्रंथकी भलामण दी हो उस विषयमें कहां कहां किस किस ग्रंथको नामसूचना की गई है उसे भी खोज. कर प्रगट करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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