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पादलिप्ताचार्य 1 ___ पादलिप्ते दीक्षा अने प्रतिष्ठाविधि विशे — निर्वाणकलिका' नामे जाणीतो ग्रन्थ रच्यो छे. आ उपरांत 'प्रभावकचरित 'ना. पादलिप्तसूरिचरित 'मां तेमणे 'प्रश्नप्रकाश' नामे ज्योतिषग्रन्थनु निर्माण कर्यु होवानो उल्लेख छे. चूर्णिओमां 'कालज्ञान' नामे एक रचनानु कर्तृत्व पण पादलिस उपर आरोपित करेलुं छे. पादलितनी प्राकृत गाथाओ हालकृत प्राकृत सुभाषितसंग्रह 'गाथासप्तशती'मां उद्धत करेली छे. ___ 'प्रभावकचरित' नोधे छे के पादलिप्ताचार्य एक वार तीर्थयात्रा करता सौराष्ट्रमा ढंकापुरी ( ढांक )मां गया हता. त्यां एमने सिद्ध नागार्जुननो समागम थयो. पछी नागार्जुने पोताना ए गुरुना स्मरणरूपे शत्रुजयनी तळेटीमां पादलिप्तपुर नामनु नगर वसाव्युं, शत्रुजय उपर जिनचैत्य करावी त्यां महावीरनी प्रतिमा स्थापित करो अने त्यां ज पादलिप्तसूरिनी मूर्ति पण स्थापित करी. ___ पादलिप्ताचार्यनो समय विक्रम संवतनी प्रारंभिक शताब्दीओमां निश्चित करवामां आव्यो छे. एमर्नु परंपरागत विस्तृत चरित 'प्रभावकचरित 'ना ‘पादलिप्तसूरिचरित 'मां मळे छे.
१ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५५४; आम, पृ. ५२४-२५; नम. पृ. १६२.
२ निचू , भाग ४, पृ. ८७२; पिनिम, पृ. १४१-४२. पिनिम मां मुरुंडने प्रतिष्ठानपुरनो राजा कयो छे, ए मुद्रणदोष होवो जोईए, केम के ए ज काए रचेली अन्य वृत्तिओमां स्पष्ट रीते पाटलिपुत्रनो उल्लेख छ ( जुओ उपर टिप्पण १).
३ बृकभा, गा. ४९१५, बृको, भाग ५, पृ १३१५-१६. आ प्रकारनां 'स्त्रीरूपो' • यवनविषय' मां पुष्कळ बने छ एम अही टीकाकार नोंधे छे.
४ निचू, भाग ३, पृ. ४७९; भाग ५, पृ. १०२९; विको, पू. ४३३; बृकम, पृ. १६४-१६५; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ७२२; भाग
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