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[ मूलदेव 'आपणे दरेके पोतपोताना अनुभवो कहेवा, अने जेना अनुभवो खोटा पुरवार थाय तेणे आ धूर्तमंडळीने भोजन आपq.' एमां त्रणे धूर्तानी न मानी शकाय एवी वातोने पण बीजाओए ब्राह्मण शास्त्रपुराणोमांनी ए प्रकारनी कथाओ रजू करी समर्थन आप्यु. आ पछी हरिभद्रसूरिना ‘धूर्ताख्यान 'मां एम आवे छे के-खंडपानानी वातने कोई साची के खोटी कही शक्यु नहि; सर्वेए हार स्वीकारी, अने पछी सौनी विनंतिथी खंडपानाए पोते भोजन पण आप्युं. पण ए बधु नहि वर्णवतां 'निशीथ चूर्णि' तो ' सेसं धुत्तक्खाणाणुसारेण णेयं (बाकी- 'धूर्ताख्यान' प्रमाणे जाणी लेवू) एम कहीने वात पूरी करी ले छे. 'निशीथचूर्णि 'नो समय पण ईसवी सनना सातमा सैकाथी अर्वाचीन नथी, एटले ते जे 'धूर्ताख्यान 'नो उल्लेख कर छे ते हरिभद्रसूरिकृत होवानो संभव नथी. कां तो चूर्णिकार पासे बीजं कोई प्राचीनतर प्राकृत 'धूर्ताख्यान' होय अथवा आ धूर्तीनी लोकप्रचलित कथा जे पण 'धूर्ताख्यान' कहेवाती होय, एनो उल्लेख तेमणे को होय.
___ 'आवश्यक सूत्र 'नी चूर्णि' अने वृत्तिमा मूलदेवना मित्र तरीके कंडरीकनुं नाम छे, जे हरिभद्रसूरिना 'धूर्ताख्यान 'मां एक पात्र तरीके छे. मूलदेवनां विदग्धता, धूर्तता अने बुद्धिचातुर्यनी कथाओ पण आगमसाहित्यमा अनेक स्थळे छे. एक ठेकाणे बुद्धिवान पुरुषने 'मूलदेव जेवो' कह्यो छे.
प्राचीन भारतनी लोककथामां अमर बनेलो आ मूलदेव खरेखर तिहासिक व्यक्ति हशे एवो डॉ. विन्टरनित्सनो मत छे; जो के मूलदेव विशेनी बधी वार्ताओ अतिहासिक हशे एवं कई एमाथी फलित थतुं नथी. आगमेतर तेम ज जैनेतर संस्कृत-प्राकृत साहित्यमा मूलदेव विशेनां कथानको तथा एना मित्रोने लगता उल्लेखो संख्याबंध छे. शूद्रक कविना ' पद्मप्राभृतक भाण 'मां मूलदेव अने देवसेना ( देव
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