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[ वज्र आर्य दुष्काळथी पीडा पामता जैन संघने तेओ पाटलिपुत्रथो पुरिकापुरी नामे नगरीमा लई गया हता. आ नगरनो राजा बौद्ध हतो, अने तेणे जैनोने पर्युषण पर्वमा पुष्पो अपवानो निषेध कर्यो हतो, तेथी वजस्वामी आकाशगामिनी विद्याथी माहेश्वरी नगरीमा जईने जिनपूजा माटे पुष्पो लाव्या हता. आ आकाशगामिनी विद्या तेमणे 'आचारांगसूत्र 'ना 'महापरिज्ञा' अध्ययनमांथी उदरी हती एम कहेवाय छे.
बार वर्षना एक मोटा दुष्काळना समयमां वजस्वामी एक पर्वत उपर अनशन करीने कालधर्म पाम्या, जे पर्वत पाछळथी 'रथावर्त" तरीके प्रसिद्ध थयो.
वजूस्वामी एक प्रभावक जैन आचार्य हता. तेमनो विहार मुख्यत्वे माळवा, मगध अने कलिंगना प्रदेशमां थयो हतो. जो के तेमना शिष्योए कोंकणमां विहार करेलो छे, एटले संभव छे के तेओ पण कदाच कोंकणमां आव्या होय. आर्य रक्षितसृरिए साडानव पूर्वोनुं अध्ययन वजूस्वामी पासे कयु हतुं. वजस्वामीना नामश्री साधुओनी वजूशाखा प्रवर्तमान थई हती.
युगप्रधान पट्टावलीओने आधारे मुनिश्री कल्याणविजयजीए वजूस्वामीना समय विशे एवो निर्णय कर्यो छे के तेमनो जन्म सं. २६
ई. स. पूर्वे ३०मां, दीक्षा सं. ३४ ई. स. पूर्वे २२मां, युगप्रधानपद सं. ७८ ई. स. २२मां अने स्वर्गवास सं. ११४ ई. स. ५८मां थयो हतो.. __वज्रस्वामीना जीवनना प्रासंगिक उल्लेखो पण आगमसाहित्यमां अनेक स्थळे छे."
१ जुओ भद्रगुप्ताचार्य. २ पुरिकापुरी ए प्राचीन कलिंगनी पुरी (जगन्नाथपुरी) होवा
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