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हरन्त संनिवेश
[ २१९ स्थानक
मुंबईनी उत्तरे आवेलुं थाणा..
कोंकण देशना स्थानकपुरनो उल्लेख 'द्रोणमुख'-अर्थात् जळ अने स्थळ एम बन्ने मार्गे जई शकाय एवा स्थान-तरीके करेलो छे.'
'स्थान' पदान्तवाळां स्थळनामो-पंजाबन मूलस्थान ( मुलतान ), सौराष्ट्रनुं थान तथा आ थाणानो संबंध भाषाशास्त्र तेम ज सामाजिक इतिहासनी दृष्टिए विचारवा जेवो छे. मूलस्थान अने थान तो सूर्यपूजानां प्राचीन केन्द्रो छे; थाणा विशे वधु संशोधन अपेक्षित छे.
१ तस्य वा द्रोणमुखं जल[ स्थल ]निर्गमप्रवेशम्। यथा कोङ्कणदेशे स्थानक नामकं पुरम् । व्यम, भाग ३, पृ. १२७
अहीं कोसमा मूकेलो 'स्थल' शब्द मुद्रित प्रतमां नथी. व्यम नुं ए संपादन हजारो अशुद्धिभोथी भरेलुं छे. बीजी तरफ 'द्रोणमुख'नो उपर्युक्त अर्थ निश्चित छे (जुओ भरुकच्छमां टि. २, तथा अभिधानराजेन्द्र 'मां दोणमुह), एटले आटलो सुधारो आवश्यक छे. स्नपन
उज्जयिनी, एक उद्यान. त्यां साधुओ ऊतरता हता.'
स्नपन शब्दनुं प्राकृत रूप ‘ण्हवण' छे; ए उपरथी त्यां कोई जाहेर स्नानागार अथवा नाहवाधोवानी जग्या हशे एवं अनुमान करी शकाय!
१. अवंतीजणवए उज्जेणीगयरीए ण्हवणुज्जाणे साहुणो समोसरिया, उशा, पृ. ४९-५० हरन्त संनिवेश
समिताचार्य विहार करता एक वार हरंत संनिवेशमां गया हता. . हरंत संनिवेशनुं स्थान निश्चित थई शक्यु नथी,. पण समिताचार्यनी विहारभूमि मुख्यत्वे माळवा अने कृष्णा तथा वेणा आसपासनो
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