Book Title: Jain Sahitya ma Gujarat
Author(s): Bhogilal J Sandesara
Publisher: Gujarat Vidyasabha
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हारिल वापक ]
अलबत्त, पट्टावलीओ प्रमाणे एक हारिल नामे युगप्रधान आचार्य वीर सं. १०५५ (वि. सं. ५८५ ई. स. ५२९ )मां स्वर्गवासी थया हता ('प्रभावकचरित,' भाषान्तर, प्रस्तावना पृ. ५४ ), सेमने आ हारिल वाचकथी अभिन्न गणवामां आवे तो हारिल वाचक ईसवी सनना पांचमा शतकना उत्तरार्धमा अने छठा शत्कना प्रारंभमां विद्यमान हता एम गणी शकाय.
१ प्रस्तुन उदरणो नीचे प्रमाणे छ : तथा च हारिलवाचकः"चलं राज्यैश्वर्य धनकनकसारः परिजनो नृपाद वालभ्यं च चलममरसौख्यं च विपुलम् । चलं रूपारोग्यं चलमिह चरं जीवितमिदं जनो दृष्टो यो वै जनयति सुखं सोऽपि हि बलः ॥"
पसा, पृ. २८९; उने, पृ. १२६ तथा च हारिल:
वासोद्धतो दहति हुतभुग्वेहमेकं नराणां मतो भागः कुपितमुजगविदेहं तथैव । शानं शीलं विनयविमवौदार्यविज्ञानदेहान् सर्वानर्थान् दहति वनिताऽऽमुष्मिकानैहिकांश्च ॥
उशा, पृ. २९७ बीजा एक अवतरण साथे जो के हारिल वाचक नाम- आप्यु नथी, पण एनी रचनाशैली जोतां ए पण हारिलन होय ए असंभवित. नथी : खास करीने एना शिखरिणीनी तुलना उपर टांकेला पहेला अवतरण साथे करवा जेवी छे:
तथा चाहु:
भवित्री भूतानां परिणतिमनालोच्य नियतां पुरा यद्यत्किश्चिद्विहितमशुभं यौवनमदात् । पुनः प्रत्यासन्ने महति परलोकैकगमने तदेवैकं पुंसां व्यथयति जराजीर्णवपुषाम् ॥
उशा, पृ. २४६
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