Book Title: Jain Sahitya ma Gujarat
Author(s): Bhogilal J Sandesara
Publisher: Gujarat Vidyasabha

View full book text
Previous | Next

Page 268
________________ हस्तकल्प ] [ २१५ " हता. त्यांना राजा अच्छदंतने हरावी पछी दक्षिण तरफ जतां तेओ कोसुंबारण्य नामे अरण्यमां आवी पहोंच्या हता. दक्षिण मधुरामां वसता पांच पांडवो अरिष्टनेमि अरिहंत सुराष्ट्र जनपदमां विहार करे छे एम सांभळीने सुराष्ट्र आव्या. त्यां हस्तकल्प नगर पासे एमणे सांभळयुं के अरिष्टनेमि गिरनार उपर निर्माण पाम्या छे. आ उल्लेखो उपरथी स्पष्ट छे के हस्तकल्प के हस्तिकल्प नगर सुराष्ट्रथी दक्षिण तरफ जवाना मार्गमां, पण सुराष्ट्रनी भूमि उपर ज आलु हतुं. 3 'पिंडनिर्युक्ति' उपरनी मलयगिरिनी वृत्तिमां क्रोधपिंडना उदाहरणमां हस्तकल्प नगरमा एक ब्राह्मणना घरमा भिक्षार्थे गयेला जैन साधुनुं कथानक छे. ' सुत्रकृतांग सूत्र ' उपरनी शीलाचार्यनी वृत्तिमा उदाहृत करवामां आवेला एक हालरडामा बीजां नगरोनी साथे हस्तकल्पनो पण उल्लेख छे. जीतकल्प भाष्य 'मां हस्तकल्प ' ( प्रा. हत्थप्प, हत्थकप्प )नो निर्देश छे. * भावनगर पासेनुं कोळियाक तालुकानुं 'हाथ' गाम ए ज आ हस्तकल्प होई शके. ' जीतकल्पभाष्य' मांनुं एनुं 'हत्थष्प' नाम एना अर्वाचीन उच्चारणने मळतुं ज छे. वलभीनां दानपत्रोमां तेनुं 'हस्तवप्र' एवं नाम मळे छे. ' १ उने, पृ. ४०. जुओ कोसुंबारण्य. २ ज्ञाध, पृ २२६ आचू, उत्तर भाग, पृ. १९७ ३ पिनिम, पृ. १३४ ४ सूशी, पृ. ११९; अवतरण माटे जुओ कान्यकुब्ज. ५ जीकभा, गा. १३९४-९५. ६ गुजरातना अतिहासिक लेखो, ' नं. २५, ६१; अहीं तळ 6 हस्तप्रनो उल्लेख छे. वलभीना अन्य लेखोमां हस्तवप्रनो उल्लेख ए नामना आहार अथवा आहरणीना मुख्य शहेर तरीके छे ( ' गुजरातना अतिहासिक लेखो, ' नं. १६, १७, १९, २०, २१, २२, २३, ४१, ४५, २६ अ तथा ६१, ७०, ७९, ८० ). Jain Education International For Private & Personal Use Only །་ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316