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[ यौगन्धरायण ___ अहो ए नोंध, रसप्रद थशे के उपर टांकेलो “यदि तां चैव०" ए श्लोक नजीवा पाठांतर साथे, भासना 'नतिज्ञायोगंधरायण' नाटक ( अंक ३, श्लो. ८ ) मां यौगंधरायणना मुखमां मुकायेलो छे. एक ज जीवंत, लोकप्रिय वस्तुनो जुदी जुदी परंपराओमां केवी रीते विनियोग थयो एनुं आ पण एक रसिक उदाहरण छे.
जुओ उदयन, प्रयोत
१ आचू , उत्तर भाग, पृ. १६२-६३. जैन परंपरा अनुसार आ आखा ये प्रसंगना रसप्रद वर्णन माटे जुओ हेमचन्द्रकृत 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र,' पर्व १०, सर्ग ११. . रक्षित आर्य ___आर्य रक्षित अथवा रक्षितसूरिनी स्तुति · नंदिसूत्र' नी स्थविरावलीमां अनुयोगोना रक्षक तरीके करेली छे.' आर्य रक्षित दशपुरना राजाना पुरोहित सोमदेवना पुत्र हता. एमनी मातानुं नाम रुद्रसोमा हतुं; तोसलिपुत्र नामे आचार्य जेओ दशपुर आव्या हता तेमनी पासे एमणे दीक्षा लीधी हती. उज्जयिनीमां वनस्वामी पासे जईने तेमणे साडानव पूर्वनो अभ्यास कर्यो हतो, तथा ते पहेलां उज्जयिनीमां एक वृद्ध आचार्य भद्रगुप्तसूरिने अनशननी आराधना करावी हती.' आय रक्षिते एमना पिता सोमदेव अने भाई फल्गुरक्षित सुद्धा आखा कुटुंबने दीक्षित कयु हतुं. तेमना पिता सोमदेव एक याज्ञिक ब्राह्मण होई, पोताने बीजाओ वंदन करे के न करे, पण वस्त्रनो त्याग करवानी विरुद्ध हता. छेवटे तेमणे कटिबनने बदले चोलपट्टक धारण कों हतो. जो के प्रभावकचरित' आदि ग्रन्थो कहे छे के स्वर्गवास पामेला एक मुनिनो मृतदेह व्यारे सोमदेवे उपाड्यो हतो त्यारे एमनुं अधोवस्त्र खेंची लेवामां अव्युं, अने त्यार पछी एमणे वस्त्र धारण कयु नहि.'
पूर्व काळमां साधुओने मात्र एक ज पात्र राखवानी छूट हती,
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