Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2 Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 8
________________ जिनभद्र की कृति है। इनका समय विक्रम की सातवीं शताब्दी है। पंचकल्प अनुपलब्ध है। __नन्दी और अनुयोगद्वार चूलिकासूत्र कहलाते हैं। नन्दी सूत्र के प्रणेता देववाचक हैं। इनका समय विक्रम की छठी शताब्दी से पहले है। अनुयोगद्वार सूत्र के निर्माता आर्य रक्षित हैं। ये वी० सं० ५८४ में दिवंगत हुए। - प्रकीर्णकों में दस ग्रन्थ विशेषरूप से मान्य हैं : १. चतुःशरण, २. आतुरप्रत्याख्यान, ३. महाप्रत्याख्यान, ४. भक्तपरिज्ञा, ५. तन्दुलवैचारिक, ६. संस्तारक, ७. गच्छाचार, ८. गणिविद्या, ९. देवेन्द्रस्तव, १०. मरणसमाधि । इनमें से चतुःशरण तथा भक्तपरिज्ञा के रचयिता वीरभद्रगणि हैं। इनका समय विक्रम की ग्यारहवीं शती है। अन्य प्रकीर्णकों की रचना के काल, रचयिता के नाम आदि के विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। प्रस्तुत भाग के लेखक आदरणीय डा० जगदीशचन्द्रजी का तथा सम्पादक पूज्य दलसुखभाई का मैं अत्यन्त अनुगृहीत हूँ। ग्रन्थ के मुद्रण के लिए संसार प्रेस का तथा प्रूफ-संशोधन आदि के लिए संस्थान के शोध-सहायक पं० कपिलदेव गिरि का आभार मानता हूँ। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान । मोहनलाल मेहता वाराणसी-५ अध्यक्ष ९-११-६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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