Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ प्रास्ताविक 'जैन पुराण कोश' पाठकों के कर-कमलों में अर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण होने के कारण १. पद्मपुराण २. महापुराण ३. हरिवंशपुराण ४. पाण्डवपुराण और ५. वीरवर्धमानपरित ये पाँच पुराणकोश के आधार बनाए गए है। प्राचीन संस्कृति को समझने में ये पुराण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। जैन पुराणकोश की योजना दस वर्ष पूर्व प्रारम्भ हो गई थी । इसमें १२६०९ नाम संकलित हैं । ५२७०५ श्लोकों का अध्ययन करके संज्ञाओं तथा पारिभाषिक शब्दों का व्याख्यासहित संकलन इस कोश में प्रस्तुत किया गया है। इस तरह से यह कोश पुराणकालीन जैन संस्कृति का चित्र प्रस्तुत करने में समर्थ है। इस कोश में मूलतः प्रथमानुयोग की विषय-सामग्री का समावेश करने के साथ-साथ अन्य अनुयोगों की विषयवस्तु भी प्रष्टव्य है, इस प्रकार चारों अनुयोगों के विषय को जानने-समझने में यह कोश उपयोगी है । इस कोश के सम्पादन में प्रो० प्रवीणचन्द्र जी जैन एवं डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया ने अथक परिश्रम किया है; उनके हम आभारी हैं । जैनविद्या संस्थान में कार्यरत विद्वान् डॉ० कस्तूरचन्द सुमन का सहयोग अत्यन्त प्रशंसनीय रहा है । जैनविद्या संस्थान के पूर्व संयोजक डॉ० गोपीचन्दजी पाटनी एवं श्री ज्ञानचन्द्रजी खिन्दूका तथा वर्तमान संयोजक डॉ० - कमलचन्दजी सोगाणी ने इस योजना को साकार करने में सदैव उत्साह दिखाया है। अतः हम उनके आभारी हैं । कपूरचन्द पाटनी मंत्री प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी Jain Education International नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 576