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चतुर्विशति तीर्थकर
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मल्लिनाथ
कलश मुनिसुव्रतनाथ कर्म नमिनाथ
उत्पल नेमिनाथ
शंख २३. पार्श्वनाथ
अहि २४. वर्धमान
सिंह तिलोयपण्णत्ती ने उपर्युक्त प्रकार सातवें तीर्थकर का चिह्न नन्द्यावर्त और दसवें तीर्थकर का चिह्न स्वस्तिक बताया है जबकि दिगम्बर परम्परा के पश्चात्कालीन ग्रन्थों में सातवें तीर्थंकर का चिह्न स्वस्तिक और दमवें तीर्थंकर का चिह्न श्रीवृक्ष मिलता है । तिलोयपण्णत्ती में अठारहवें तीर्थकर का चिह्न तगरकुसुम कहा है जिसका अर्थ हिन्दी टीकाकार ने मीन लिया है । नेमिचन्द्र ने अठारहवें तीर्थकर का चिह्न तगर, वमुनन्दि न पाठोण और जयमेन ने कुसुम बताया है।
अभिधानचिन्तामणि मे मातवें तीर्थकर का निह्न दिगम्बरों के समान स्वस्तिक, दमवे तीर्थंकर का चिह्न श्रीवत्स, ग्यारहवें का ग्वङ्गी (रूपमण्डन में खङ्गीग, अन्यत्र गण्टक), चौदहवे तीर्थकर का श्येन और अठारहवे तीर्थकर का चिह्न नन्द्यावर्त कहा गया है । दीक्षा और दीक्षावृक्ष
दिगम्बर परम्परा के अनुसार वासुपूज्य, मल्लि, नेमि, पाश्वं प्रौर महावीर इन पाँच तीर्थकरों ने कुमार अवस्थामे ही तप ग्रहण कर लिया था।' श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यता है कि महावीर ने विवाह किया था ।' नेमिनाथ ने द्वारावती (द्वारिका) में जिनदीक्षा ग्रहण की पर अन्य सभी नोर्थकरो ने अपने अपने जन्मस्थान मे ही तप ग्रहण किया था ।५ चौबीस
१. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ५/७२-७४; प्रतिष्ठापाठ, ३४६-४७; प्रतिष्ठा
सारोद्धार, १/७८-७६; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ५८१-८२ तथा अन्य । २. १/४७-४८ ३. प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ५०३; तिलोय० ४/६७०. ४. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमें उन्हें कृतोद्वाह किन्तु अकृतगज कहा है। ५. तिलोयपण्णत्ती, ४/६४३