________________ 120 जैन प्रतिमाविज्ञान नैऋत्य को जैन परम्परा में मुद्गरधारी बताया गया है / मत्स्यपुराण प्रादि में वे ग्खड्गधारी हैं / निर्वाणकलिकाकार ने नैर्ऋत्य को खड्गधारी कहा वरुण के हाथ में नागपाश या पाश होता है। वसुनन्दि आदि ने पवन का मायुध महावृक्ष बताया है पर आचारदिनकरकार ने पवन को ध्वजधारी कहा है जैसा कि अग्नि पुराण और मत्स्यपुराण में है / __अग्निपुगण में कुबेर का प्रायुध गदा बताया गया है। जैन लोग भी वैसा ही मानते है / प्राशाधर ने गदा और वसुनन्दि ने शक्ति प्रायुध का उल्लेख किया है। प्राचारदिनकरकार धनद को रत्नहस्त पर निर्वाणकलिकाकार कुबेर को गदापाणि कहते है। ईगान गूल या त्रिशूल धारी है / प्राशाधर के अनुसार उनके द्वितीय हस्त में कपाल किन्तु आचारदिनकरकार के अनुसार पिनाक होता है / चन्द्र के प्रायुध भाला और धनुष है / ब्रह्मा के हाथों में पुस्तक और कमल होते हैं। धरणेन्द्र अंकुश और पाश धारण करते हैं / प्राचार दिनकर और निर्वाणकलिका के अनुसार उनके हाथ में सर्प होता है / दिक्पालों की पत्नियां / शची, स्वाहा, छाया, निर्ऋति, वरुणानी, वायुवेगी, धनदेवी, पार्वती, रोहिणी और पद्मावती, ये क्रमशः इन्द्र, अग्नि, छाया, नैर्ऋत्य, वरुण, वायु कुबेर ईशान, सोम और धरणेन्द्र की पत्नियां कही गयी हैं / ब्रह्मा की पत्नी का उल्लेख नहीं है / विष्णुघत्तिर में यम की पत्नी धमोर्णा और कुबेर की पत्नी ऋद्धि कही गयी है। दिक्कुमारिकाएं हिमवान्, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी, इन छह कुलाचलो पर स्थित पद्म, महापद्म, निगिंछ, केसरी, पुण्डरीक पोर महापुण्डरीक ह्रदों के मध्य में स्थित अति विस्तीर्ण कमलो पर क्रमशः श्री, ह्री, धृति, कीत्ति, बुद्धि और लक्ष्मी, ये देवकन्याएं अपने सामानिक और पारिषत्कों के साथ निवास करती हैं / ये तीर्थंकरों के गर्भ में आने पर जननी की सेवा किया करती हैं. यथा श्री चामर ढलाती है, ह्री छत्र तानती है आदि आदि / 1. जंबूदीपपण्णांतसंगहो, 3/66 2. वही, 3/78