Book Title: Jain Pratima Vigyan
Author(s): Balchand Jain
Publisher: Madanmahal General Stores Jabalpur

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Page 198
________________ १८६ जैन प्रतिमालक्षण तत्तीर्थोन्पन्ना मिद्धायिका हरितवर्गा मिहवाहना चतुर्भुजा पुस्तकाभय युक्तदक्षिणकरा मातुलिग-- वीणान्वितवामहस्ता चति । निर्वाण कलिक', पन्ना ३७ मर्वाल यक्ष उत्तुग शरद भ्रशुभ्र मुचितं सद्विभ्रम विभ्रत या दिव्यद्वितमामराह शिर मि श्राधमंचक्र दो । हस्ताभ्याममितद्युति करयुगेनान्येन बद्धानि न जैनाघ्वररक्षणक्षममिम मर्वाहयक्ष यजे ।। नामचन्द्र, पन्ना EE अनावृत यक्ष मेरोरीगानभागे कुरुषु मणिमयस्यात्तरे स्थितम्य श्रीजबूभूरुहम्य स्थितिजुषमनिग पूर्वशाग्वाम्थमोधे । शव चक्र च कुण्डि दधतमुरुकररक्षमाला च कृष्ण पक्ष न्द्राम्ढमम्या भवदिशि विधिनानावन्द्र भजामि ।। नेमिचन्द्र, ३६३ जवक्षम्य नानामणिमयवपुषः प्राज्य जवतम्य प्राक्शाखामावमत नवजलदरच पक्षिराजाधिस्टम् । कुण्डीदाखाक्षमालारथचरणकर वानि:शषजवू द्वीपधाक यजेस्मिन विधुविधुतयनावृत व्यतरन्द्रम् ।। प्रागाधर, ३।२०१ ब्रह्मशाति यक्ष ब्रह्मशान्ति पिङ्गवर्ण दष्ट्राकरालं जटामुकुटमण्डिन पादुकामढ भद्रामनस्थितिमपवीतालकृतम्ध चतुर्भुज अक्षमूत्रदण्ड कान्वितदक्षिणपाणि कुण्डिकाक्षत्रा-- लकृतवामपाणि चेति । निर्वाणकलिका, पन्ना ३८

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