Book Title: Jain Pratima Vigyan
Author(s): Balchand Jain
Publisher: Madanmahal General Stores Jabalpur

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Page 204
________________ १६२ ३. यम जैन प्रतिमालक्षण स्वमारग्घर्घर वग्गलच पृथुप्राभगाभनुग स्थं द्रविगक्षणयुगमल ब्रह्मसूत्र शिवास्त्रम् । कुडी वामप्रकोष्ठे दधतमितर पाण्यात पुण्याक्षसूत्र स्वाहान्वीतं धिनोमि श्रुतिमुखरसभ प्राच्यपाच्यतरेग्निम् ॥ ग्राणावर, ३।१८६ शोणमश्र के शावक मरुणरुच जाज्व नज्वालशक्ति कुडी वामेक्षमालामिनर करतले विभ्रत सोपवीतम् । स्वाहायुक्त नियुक्त जिनयजनविवेधूपादिकारे द्वेदात्राषिम्यावृतमनलमलकारसार यह ।। नमिचन्द्र, ३५० नम प्रग्नये सर्वदेवमुख य प्रभूततेजोमयाय छागवाहनाय नीलाम्बराय पणिहस्ताय ग्रावारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७६ तत्र अग्नि अग्निवर्ण मपवाहन सप्नशिव शक्तिपाणि चेनि । निर्वाणकालका पन्ना : प्रोद्यत्प्रचण्ड महिषोत्तमयानसम्थ दार्दण्डनक राद्धृतदडवडछायागनादिपरिवारपरिष्कृतागमाहानये वर्मामु विशिदक्षिणम्याम् । वसुनन्दि, ६५६ 1 कल्पान्ताब्दोष जे गुणफणगुणागतिग्रैवघण्टा टंकाराश्रु प्रय गक्रमतमधरातरनाक्षमस्थम् । चडाचिकादण्डाट्टमरकर मनिकरदारादिलीक कायद्रेक नृशमप्रथममथ यम दिश्याच्या यजामि || प्रशाधर, ३।१८६ गवलयुगलधृष्टाम्भोदमाख्डवन्त महिनमहिपमुच्न र जनाद्वीन्द्रकल्पम् । प्रतिमहिषभूष भीषण चडदडविदिनमदयधर्म व्याह वय धर्मराजम् ।। नेमिचन्द्र, ५२ नमो यमाय धर्मराजाय दक्षिणदिगधीशाय कृष्णवर्णाय चमविरणाय महिषवाहनाय दण्डहस्ताय । प्रचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७६

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