Book Title: Jain Pratima Vigyan
Author(s): Balchand Jain
Publisher: Madanmahal General Stores Jabalpur
View full book text
________________
चतुर्विशति यक्षी
१८५
स्वर्णाभोनमकुर्कुटाहिगमना सौम्या चतुर्बाहुभद् वामे हस्तयुजेश दधिफलं तत्रापि व दक्षिणे पद्मं पाशमुदञ्चयन्यमविरत पद्मावतीदेवता किन्नर्यचितनित्यपादयुगला संघम्य विघ्न ह्रियात् ।।
प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७८ तस्मिन्नेव तीर्य समुत्पन्ना पद्मावता देवी कनकवर्णा कुर्कुटवाहना चतुर्भुजा पद्मपाशान्वितदक्षिणका फलाकुगाधिष्टिनवामकरा चेति।
निर्वाणकलिका, पन्ना ३७
२४. मिद्धायिका
मिद्धायिका तथा देवी द्विभजा कनकप्रभा ।। वरदा पुस्तकं धत्ते मुभद्रासनमाश्रिता ।
वसुनन्दि, ५।६६-६७ मिद्धायिका सप्तकरोच्छिनांगजिनाश्रयं गुम्न कदानहस्ताम् । श्रिता मुभद्रासनमत्र यज्ञे हेमद्युति मिहर्गात यजेहम् ।।
___ ग्रागाधर, ३/१७८ बिनि या पुस्तकमिष्ट दान मव्यापमन करदायेन । भद्रामनामाश्रितवर्धमाना मिद्धायिका सिद्धिकरी भजेताम् ।।
नेमिचन्द्र, ३४८ देवी मिद्धायिका चामोदामीना गजवाहने । हरिच्छविः पुस्तकाढ्याऽभयदी दक्षिणा करी ।। वामो नु दधनी बीजपूरवल्लकिमयुनो। प्रभोरभृता ते निन्यामन्ने गामनदेवते ।।
अमरचन्द्र, २४८.२४६ मिहस्था हरिताङ्गरुक भजचतुष्केण प्रभावोजिता नि-यं धाग्निपुम्नकाभयलमद्वामान्यपाणिद्वया । पाशाम्भोरुहराजिवामकरभाग सिद्धायिका सिद्धिदा श्रीमंघस्य करोतु विघ्नहरणं देवार्चने मंस्मृता ।।
प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७८

Page Navigation
1 ... 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263