Book Title: Jain Pratima Vigyan
Author(s): Balchand Jain
Publisher: Madanmahal General Stores Jabalpur
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१७८
जन प्रतिमालक्षण
तम्मिन्नेव तीर्थे ममुत्पन्ना अंकुशा देवी गौरवर्णा पप्रवाहना चतुर्भुजा खड्गपाशयुक्नदक्षिणकरां चर्मफलकाकुशयुनवामहस्ता चति ।
निर्वाणकालिका, पन्ना ३६
प्रकशा नाम्ना देवी तु गौगङ्गी कमला मना ।। दक्षिणे फलकं वामे वकुशं दधती करे। अनन्तस्वामिनश्तीविना शामन देवता ।।
प्रमरचन्द्र, अनन्तजिनचरित्र, १६-२०
१५. मानमी कन्दर्पा
माबुजधनुदानाकुगगरोत्पला व्याघ्रगा प्रवाल निभा। नवपचकचापांच्छितजिननम्रा मानमीह मान्येत ॥
प्राशाधर, ३/१६६
अंभोग कार्मुकमिट दान धने कुरा मार्गणमृत्पलं च । दधाति वै धजिनशयक्षी या मानसीमा बहु मानयामि ।।
नेमिचन्द्र, ३४५
देवता मानमी नाम्ना पड्भ जा विद्रमप्रभा । व्याघ्रवाहनमारूढा नित्य धर्मानुरागिणी ।।
वसुनन्दि, ५/४५
कन्दपांत परपन्नगाभिधाना गोरामा झष गमना चतुर्भुजा च । मत्पद्याभययुतवामपाणियुग्मा । कल्हाराङ्क,शभृतदक्षिण द्विपाणिः ।।
प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७७ तस्मिन्नेव तीर्थे ममुत्पन्ना कन्दपी देवी गौरवणी मत्स्यवाहना चतुर्भुजां उत्पलाकुशयुक्तदक्षणकरा पद्माभययुक्तवामहस्तां चेति ।
निर्वाणकलिका, पन्ना ३६

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