Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 3
________________ इस कथन से यह सिद्ध होता है कि परमात्मा के गुणों का अर्चन आत्मशुद्धि, पारिवारिक शुद्धि, सामाजिक शुद्धि, राष्ट्रशुद्धि और लोकशुद्धि का कारण है । के पर्यायवाची शब्द मंगल, पूजा, पूजन, नमस्या, सपर्या अर्चा, अर्चन, अर्हणा, अर्हण, उपासना, भक्ति, कीर्तन, स्तुति, स्तोत्र, स्तव, नुति, भजन, यजन, वन्दना, नमस्कृति, नमस्कार, कृतिकर्म, चितिकर्म, विनयकर्म, अतिथिसंविभाग व्रत । इन सब पर्यायशब्दों का तात्पर्य एक ही है : परमात्मा, परमेष्ठी अथवा तीर्थंकरों के गुणों का कीर्तन और तदनुकूल आचरण करना । पूजा विभिन्न मतों में पूजा आचार्य कुन्दकुन्द ( प्रथम शती ई.) ने मानव के चार कर्तव्य-दान, पूजा, तप एवं शील निरूपित किये हैं। इनमें पूजा द्वितीय स्थान पर है। इन्हीं ने अपने ग्रन्थ रयणसार में भी पूजा को आवश्यक कर्तव्य घोषित किया है ।" आ. समन्तभद्र (120-80 ई.) ने भी त्रियोगपूर्वक पूजन को आवश्यक कर्तव्य प्रतिपादित किया है । " इसी प्रकार आचार्य जिनसेन (आठवीं शती), आ. अमितगति', सोमप्रभ', चामुण्डराय", योगीन्दुदेव', जटासिंहनन्दी', तथा पं. आशाधर ने भी मानव के दैनिक कर्तव्यों में पूजा को प्राथमिक करणीय कार्य विश्लेषित किया है। भारतीय दर्शन में पूजा तत्त्व भारतवर्ष में सुदूर प्राचीन काल से तत्त्व- चिन्तन की समृद्ध परम्परा दार्शनिक विचारों के रूप में पल्लवित और पुष्पित होती आ रही है। यहाँ प्रचलित वैदिक और अवैदिक अथवा ब्राह्मण और श्रमण प्रायः सभी दार्शनिक धाराओं में पूजा / उपासना 1. अष्टपाहुड संस्कृत टीका, सम्पा. पं. पन्नालाल साहित्याचार्य प्र. दि. जैन संस्थान, महावीर जो 1968, पृ. 100 रयणसार, प्र. जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था, महावीर जी, 1962, पृ. ४. स्तुतिविद्या, प्र. वीर मेवा मन्दिर देहती 1950 पत्र 114. 2. 5. 4. अमितगति श्रावकाचार, (श्रावकाचार संग्रह जिल्द एक में संगृहीत) 1976, पृ. 396सूक्तिमुक्तावली, सं. नाथूराम प्रेमी (बनारसी विलास के साथ प्रकाशित). प्र. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्या. बम्बई, 2432 वी. नि., पृ. 258. 5. चारित्रसार ( आवकाचार संग्रह जिल्द-एक में संगृहीत). पृ. 258. 6. 7. 8. परमात्म प्रकाश, सं. डॉ. ए. एन. उपाध्ये, प्र. रामचन्द्र ग्रन्थमाला अगास, 1973 ई. पृ. 280. वरांगचरित, सं. खुशालचन्द्र गोयबाला. प्र. जैन संघ चौरासी मथुरा, 1953 ई. पृ. 204. 6 जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन

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