Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ प्राक्कथन विश्व में सदैव लोक-कल्याण के लिए एक धर्म, एक दर्शन एवं एक संस्कृति की आवश्यकता रहती है। “आगमनाविष्कारों की जाती है। इस नीति के अनुसार विश्व में अहिंसाधर्म, अनेकान्तदर्शन एवं अहिंसात्मक संस्कृति का उदय हुआ। कर्मयुग के प्रारंभ में मानव की जीवन यात्रा के लिए ऋषभदेव ने सर्वप्रथम असि, मति, कृषि, विद्या, शिल्प और व्यापार का उपदेश दिया। प्रजापतिर्यः प्रथमं जिजीविषुः, शशास कृष्यादिसु कर्मसु प्रजाः। प्रबुद्धतत्त्वः पुनरद्भुतोदयः, ममत्वतो निर्विविदे विदांवरः।। दैनिक कर्तव्य उपर्यक्त के अतिरिक्त ऋषभादि तीर्थंकरों ने लोक कल्याण, एवं जीवन की पवित्रता के लिए प्रतिदिन छह करणीय कर्तव्यों का आदेश दिया है। वे इस प्रकार हैं--(1) देव पूजा, (2) गुरु की भक्ति , (3) हितकर ग्रन्थों का स्वाध्याय, (4) संयम एवं नियम का आचरण, (5) दूषित इच्छाओं को निकालकर अच्छे कार्य करना, चित्त का वशीकरण, (6) स्व-पर कल्याण हेतु दान करना । आचार्य पद्मनन्दी ने इन 6 कर्मों का समर्थन किया है देवपूजा गुरुपास्तिः, स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थानां, षट् कर्माणि दिने दिने।' दैनिक कर्तव्यों में पूजा : प्रथम उक्त छह कर्तव्यों में देवपूजा, सबसे प्रथम कर्तव्य कहा गया है, कारण कि परमात्मा का पूजन गणों का स्मरण ) करने से मानव के हृदय, वचन एवं शरीर की शुद्धि होती है। इन तीन योगों की शुद्धि होने से सम्पूर्ण पानव-जीवन पवित्र हो जाता है। व्यक्तिगत जीवन पवित्र होने से सामाजिक जीवन एवं पारिवारिक जीवन पवित्र हो जाता है, इसी कारण से राष्ट्रीय जीवन भी नियम से पवित्र हो जाता है। 1. पद्मनन्दी पंचविंशतिका : आ. पद्धनन्दी : सं. जवाहरलाल शास्त्री, पोण्डर, इलोक 403 : पृ.191. प्राक्कथन :: 5

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 397