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सची और पकी इतिहास सामनिशं इतनो दुष्प्राप्य हैं कि प्राचीन काल की सिलसिलेवार इतिहास रचना केवल लेखक महाशय की कल्पना मात्र प्रतीत होती है । वर्तमान में जो कुछ साधन मिलते हैं उस से यह ज्ञात होता है कि जैसलमेर राज्य में लोद्रपुर (लोदरवा ) नामक स्थान ही उस प्रान्त की प्राचीन राजधानी थी और वहां पर “लोड” जाति के राजपूत बसते और शासन करते थे । पश्चात् कालवक से विक्रम एकादश शताब्दि में भाटी राजपूतों के नेता देवराज लोद्रवा पर आक्रमण कर के वहां के राजा नृपभानु को जिनका नाम पं० हरिदत्त व्यासजी के इतिहास में “जसमान” लिखा है, परास्त कर के “लोद्पुर" को अपने अधिकार में कर लिया । पश्चात् सं० १२१२ तक भाटो राजपूतों की बराबर लोद्रवा में राजधानी रही। इसी देवराज से भाटी नरेशों की महारावल पदवी प्रारम्भ हुई है। भाटियों को उत्पत्ति के विषय में मारवाड़ दरवार के महकुमा तवारिज के सुपरिन्टेंडेन्ट प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान्. स्वगीय मुन्सी देवो प्रसादजी मुनसिफ कृत "मारवाड़ को कामो का हाल" नामक पुस्तक के पृ० ६ में भाटीवंश की उत्पत्ति इस प्रकार वर्णित है:--
"भाटी अपनी परमपरा चांद से उसो तरह मिलाते हैं जिस तरह से कि राठौड़ सीसोदिये और म.छपाहे सूरज से चन्द्रग्रंशियों की पुरानी शाखार्य कौरव पांडव और यादव थीं महाभारत की मशहूर लड़ाई इसी खानदान में आपस को ईषा से हुई थी जिसमें कौरव और पाण्डयों का खातमा करीब तयार केहो गया था कोम यादव जिसके अधिष्ठाता श्री कृष्णजो थे महाभारत के पीछे आपस में लड़कर कट मरी। और थोड़े से आदमी जो जीते बवे वे द्वारिका से काबुल. ग़ज़नो और बलख बुखारा की तरफ चले गये वहां बहुत मुद्दतों तक उनका राज रहा। फिर तुओं ने ज़ोर पकड़ कर उनका पंजाय की तरफ हटा दिया यहां भी बहुत मुद्दत तक रहे बल्कि यह शाख भारियों को पंजाब में हो भटनेर में रहने से पैदा हुई है । भटनेर से तनोट तनोट से देरावर और देवर से जेसलमेर आये जहां अब उनको
राजधानी है।" परन्तु इतिहास से स्पष्ट है कि भाटी देवराज विजयी होने के पश्चात् देरावल से लोवा राजधानी ले गये और जैसलमेर दुर्ग और नगर स्थापित होने के पूर्व सं० १२१२ तक लोद्रवा हो भाटी राजपूतों की राजधानी रहो।
जैसलमेर की उत्पत्ति के विषय में यह विवरण मिलता है कि सं० १२१२ में रावल दूसाजी के ज्येष्ठ पुत्र जैसल ने भाने भ्रातप्पुत्र महारावल भोजदेव को मुसलमान शहायुदोन घोरो को सहायता से मार कर लोदवा के राजा हुए। परन्तु उस स्थान को निरापद न समझ कर वहां से ५ कोस दूर एक छोटी डुंगरी पर नवोन जैसलमेर नाम से दुर्ग और उसी नाम का नगर उप्ती समय बनवाया था।
महारावल देवराज से लेकर जैसलमेर के वर्तमान नरेश तक इतिहास और लेखों से इस प्रकार महारावल राजाओं के नाम पाये जाते हैं:
"Aho Shrut Gyanam"