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बाफणा वंश
जैसे विक्रम के १८ वीं शताब्दि के शेषार्द्ध में ओसवाल वंश के गेहलड़ा गोत्रवाले पूर्वदेश में समृद्धिशाली और राज सन्मान से विभूषित हुए थे उसी प्रकार राजपूताना में १६ वीं शताब्दि के प्रारम्भ से हो जैसलमेर निवासी areer वंशवाले भी विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुये थे। इस गोत्र की उत्पत्ति के विषय में 'महाजन वंश मुक्तावली' मैं कुछ वर्णन है । 'जैन सम्प्रदाय शिक्षा' के पृ० ६३१ में इस गोत्र की उत्पत्ति का इस प्रकार संक्षिप्त विवरण है :
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'धारा नगरी का राजा पृथ्वीधर पवार राजपूत था, उसकी सोलहवीं पीढी में जोवन और सच्चू, ये दो राजपुत्र हुए थे, ये दोनों भाई किलो कारण धारा नगरी से निकल कर और जांगलू को फतह कर वहीं अपना राज्य स्थापित कर सुख से रहने लगे थे, विक्रम सं० ११७७ ( एक हजार एक सौ सतहतर ) में युग प्रधान जैनाचार्य श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज ने जोवन और सच्चू ( दोनों भाइयों ) को प्रतिषोध देकर उनका महाजनवंश और बहूफणा गोत्र स्थापित किया ।"
मैं आगे ही कह चुका हूं कि उस प्रांत में बाफणा वंश वाले विशेष रिद्धि और प्रसिद्धिशाली हुए थे । इनके वंशजों का प्राचीन इतिहास मेरे देखने में नहीं आया । इनके पूर्वज देवराजजी से इनके वंशजों का विवरण लेख नं० २५३० में है । इनके पुत्र गुमानचन्दजी थे । उनके पुत्रों ने ही उस प्रांत के मुख्य २ नगरों में व्यापार बारम्भ किया था । इनके पांचों पुत्र यथाक्रम (१) बहादुरमलजी कोटा सहर में ( २ ) सवाईरामजी झालरापाटन में (३) मंगनीरामजी रतलाम में ( ४ ) जोरावरमलजी उदयपुर में और ( ५ ) परतापचन्दजो ने जैसलमेर में अपनी २ कोठियां खोली थी । इन लोगों के हाथ में बहुत से रजवाड़ों का सरकारी खजाना भी था। इसके शिवाय राजस्थान के और भी बड़े २ व्यापार केन्द्र और शहरो में इन लोगोंने महाजनी और तिजारती आरंभ किये थे और प्रायः उन्होंने सब जगह बहुमूल्य इमारतें भी बनवायो यो जो अद्यावधि पटुवों की हवेलीके नामसे प्रसिद्ध I उस समय इन लोगों की प्रतिष्ठा बहुत कुछ बढो चढो थी । राजस्थान के कई दरवारों से इन लोगों को सोना Dear गया था और 'सेट' की उपाधि से भी ये लोग सम्मानित किये गये थे । इन मैं से सेठ बहादुरमलजी और जोरावरमलजी उस समय के राजनैतिक कार्यों में भी पूरा भाग लेते थे ।
औरंगजेय की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली सिंहासन क्रमशः हीनवल होता गया। इसी अवसर में महाराष्ट्रगण भारत के बहुधा प्रांत में स्वार्थवश नाना प्रकार अत्याचार करते थे । उसी समय वृटिश सरकार भी प्रायः सर्वत्र राजनैतिक नामा कौशल से भारत में शांति स्थापन के लिये और दुखी प्रजाजनों का कष्ट दूर करके राज्य विस्तार
* ये लोग किस प्रकार से 'पटुवा' कहलाने लगे इसको कोई विश्वासयोग्य ऐतिहासिक कथा मुझे मिली नहीं । इस वंश के कई स्थानवाले आज तक पहुंबे के नाम से प्रसिद्ध हैं ।
"Aho Shrut Gyanam"