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मत्ततं मय । पासो
सज मह्निरिनेमी | वसुपुज्जरस चस्थेण । बजतेण से सायं ॥ केवलि तपः
निव्वाणमंत्र किरिया । सा चउसमे पढमनाइस्सं । सेसाथ मासिए वी (र) जिबिंदस्स उणं ॥ निर्वाण तपः ॥ उसो पंचधसए नव पासो सत्त रपियो वोरो
सेसद्ध पंच श्रद्धय पन्ना दस पंच परिहीणा देहमानं ॥
( ३६ )
वङ्गष्ठं वर ससियो सीसेणं नेमिचंद सूरिस्स । जव (?) जयाणंदेणं गपिया लिदियं
सिवं दे ||
* शिलालेख में कल्याणकों की तिथियों के अतिरिक्त तीर्थङ्करों के शरीर के वर्ण, निस्क्रमण, केवली, निर्वाण तप और शरोर प्रमाण की गाथायें भी खुदी हुई हैं। ये सब गाथायें 'आवश्यक सूत्र' को नियुक्ति को द्वितीया araftar में श्लोक संख्या १७२, १७२, ६, ३३, ८४ और १७३ में दी हुई हैं । इस ग्रन्थ के कुछ अंश 'यशोविजय जैन ग्रन्थमाला' नं० ४६, ४७ में छपे थे। इसके पृ० ६३-६४, ४०, ४४, ५१ और ६४ में यथाक्रम से उपरोक्त गाथार्थ मिलेंगी। प्रवचन सारोद्वार' में भी ऐसी गाथायें हैं ।
"Aho Shrut Gyanam"