Book Title: Jain Lekh Sangraha Part 3
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 355
________________ संवत् १३३० १३४५ १३४६ १४८५ LeK १३८६ १३११ १४६८ १५०७ १५०८ १५१२ te नाम पद्मद्र (पं० ) सिद्धसूरि [१६] " ދ +++ [ » ] " कसूरि [१०] [,] [?] [, ] [,] " 2) M " सरि कुदाचार्य [ » ] " [ १७ ] ... ककुदाचार्य ि कृष्णपि गन्न । नद्रसूरि यह सरि ... [ २१२ ] लेखांक २२३६ २२३८ २१७६, २३६१ २४११ २२५३ રર૬૩ २३०२ २३२५ २३३५. २००७ २१७६२२०४ २३२० २२०१, २२०४. २२५३. २२६१, २३२७. २३६५. २३६१, २५३६, २५७७ २५३४ २३१४ संवत् १३८४ i नाम "Aho Shrut Gyanam"; चजुरि कसूरि कोरंट गछ । खरतर गद्य | यो सू वर्द्धमान रि जिनेश्वर सरि मिि लेखांक २४८८ २१२०, २१६४ २१२०, २१३६ २६.४४ २१२०, २१३६, २१४३, २४०१ २४०४२.०६ ૨૦૦૬ २११२-१३. २१६०, २१३६.२१४४ २१५३. २६५५२३५१२३८५ २९८६२५०१ २४०४ -०६, २४४६. २४६६ - २५०० २५०४ २५६६. २५१८, २५४३. २५०२. २५०५, २५८० * संवत् १०८० में अणशिलपुर के दुर्लभ पति की सभा में विजयी होकर श्रीजिनेश्वर रि' 'खरतर विद पाये थे, ऐसा प्रवाद है । इनके पार पर 'श्रीजिनचंद्र सूरि' बैठे थे। इनके पश्चात् खरतरगच्छ में हर चौथे आचार्य का नाम 'श्रीजिनचंद्रसूरि' मिलते हैं। यह प्रथम घोजियचंद्र सूरिजी से लेकर नवमे श्रोजनचंद्रसूरिजी ( १६३५ ५५ ) तक के जितने नामों में खास संवत् नहीं हैं वे सब एक साथ ही यहां दिये गये हैं ।

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