Book Title: Jain Lekh Sangraha Part 3
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 332
________________ ब्रह्मसर श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर। शिलालेख । [ 2581] • (१) ॥ स्वस्तिश्री संवत् १ए४४ शाके ॥. (२) १७०५ माघ शुक्ल ७ शनौ प्रवर्त्त ॥ (३) माने ब्रह्मसर ग्रामे पार्श्वजिनचैत्यं (४) महारावलजी श्री श्री १५५ श्रीवैरिशा (५) खजीविजयराज्ये कारापित ओशवंशे (६) वाग(रे)चा गोत्रे गिरधारीलाल नार्या सिण (७) गारी तत्पुत्र हीरालालेन प्रतिष्टितं जै (७) ननिक्कू मोहनमुनिना प्रेरक वाग(रे)चा (ए) अमोलखचन्द पुत्र माणकलालेन कृ (१०) तं गजधर महादान पुत्र श्रादम ना (११) मेण श्रेयोनूयात् शुनं नवतु * 'ब्रह्मसर' और 'गजरूपसागर' ये दोनों स्थानों के लेख मुझे जेसलमेर के खरतरगच्छ के बड़े उपासरे के पं० लक्ष्मीचंद्रजी यति की कृपा से प्राप्त हुये है। यह स्थान जेसलमेर से उत्तर की तरफ चार कोस पर है। यह लेख मंदिर के बांये तरफ है। "Aho Shrut Gyanam"

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