Book Title: Jain Kumar sambhava ka Adhyayan Author(s): Shyam Bahadur Dixit Publisher: Ilahabad University View full book textPage 4
________________ प्राक्कथन भारतीय काव्य साहित्य अपने सूक्ष्म एवं गहन विचारों के लिए जगत प्रख्यात है। अनेक काव्यशास्त्रियों ने समय-समय पर अपने नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा के सहारे इसे परिवर्तित एवं सुसज्जित किया है। जैन आचार्य महाकवि जयशेखरसूरि उन काव्य मर्मज्ञों में विशेष स्थान रखते है यद्यपि उन्होंने उन्नीस ग्रन्थों का प्रणयन किया है तथापि जैनकुमारसम्भव महाकाव्य की रचना से ही वे महाकवि की प्रतिष्ठापूर्ण पदवी से विभूषित हुए, क्योंकि महाकाव्य का निर्माण किसी भी कवि का चरम लक्ष्य होता है जो उसे महाकवि कहलाने का अधिकारी बनाता है। अत: इस महाकाव्य की काव्यशास्त्रीय समालोचना के उपरान्त विद्वानों ने इसे एक श्रेष्ठ महाकाव्य की श्रेणी में गणना की है। __प्रस्तुत शोध प्रबन्ध को नव अध्याय में विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय 'जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व' में काव्य का स्वरूप, काव्य वैशिष्ट्य, काव्य-भेद तथा जैनकुमारसम्भव के महाकाव्यत्व पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय अध्याय “जैनकुमारसम्भवकार की जीवनवृत्त, कृतियाँ तथा जैनकाव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं प्रेरणाएं" के अंतर्गत महाकवि जयशेखर सूरि की जीवनवृत्त, रचनाएं तथा जैन-काव्य साहित्य के निर्माण की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक अवस्थाओं का सूक्ष्म विवेचन किया गया है तथा जैन काव्य साहित्य के निर्माण के मूल प्रेरणाओं के सम्बन्ध में उल्लेख किया गया है। तृतीय अध्याभ “जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथावस्तु तथा उसPage Navigation
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