Book Title: Jain Katha Sagar Part 2
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 7
________________ VI (२) खंड कथा - संक्षिप्त कथावस्तु वाली कथा को खंड कथा कहते है. (३) उल्लापकथा · समुद्रयात्रा या माहमपूर्ण किया गया प्रम निरुपण जिगम हो उल उन्नापकथा कहत है. (४) परिहास कथा - हास्य एवं व्यंगात्मक कथा का परिहास कथा कहते है. (५) संकीर्ण कथा - जिममें कथा के अन्य तत्त्वों का प्रायः अभाव हा उमं संकीर्ण कथा कहत है. इस प्रकार कथाओं के विभिन्न प्रकार उपलब्ध होते है. उन सवम कर्मबन्ध करन बाली. गगद्रप की वृद्धि करने वाली कथाएँ त्याज्य वताई गई है. धर्म कथा का ग्राह्य बताई गई है इन धर्म कथा के श्रवण सं जीव अपने पूर्ववन्द्र कर्मों को नष्ट कर के आत्म विकास कर सकता है. ___करीव २५०० वर्ष पूर्व युनानी दार्शनिक साक्रटिसनं कहा है कि कथावात्ताआ के श्रवण म्म मानव अपन भावावेशों का विरचन यानं शुद्रीकरण करता है और उसस यह सामथ्यं प्राप्त करता है तत्पश्चात सुखानुभव होता है. अतः कथाओंका श्रवण निरंतर करना चाहिए. चरम शासनपति परमात्मा महावीर स्वामी को धर्मकथा के विषय में पुछा गया प्रश्न एवं उत्तर इस प्रकार है - धम्म कहाए णं भंते! जीवे किं जणयह? धम्मकहाए णं निज्जरं जणयइ, धम्म कहाए णं पवयणं पभावेइ, पवयण पभावे णं जीवे आगमिसस्स भदत्ताए कम्मं निबन्ध (उत्तरा. २९/२८) __ अर्थात् - हे भगवन्त! धर्म कथा ये जीव क्या प्राप्त करता है? उत्तर - धर्म कथा स निर्जरा होती है, जिन प्रवचन की प्रभावना होती है. प्रबचन की प्रभावना करने वाला जीव भविप्य में कल्याणकारी फल देने वाले कर्मों का अजंन करता है.. यहाँ यह वात स्पष्ट हो जाती है कि अन्य कथाओं की तरह धर्मकथा न केवल मनोरंजन करने या कालक्षेप करने के लिए ही है अपितु धर्मकथा का श्रवण-मनन-वांचन जीवन की शुद्धि का एक अपूर्व साधन भी है. कथावार्ताओं से मानव जीवन का विकास होता है. श्रवण एवं पठन में जीवन में रस पैदा होता है. पुण्य का अर्जन होता है पाप का नाश होता है. जीवन में सदाचार स्थिर होता है और असदाचार का नाश होता है. मलीन 'भावों के दुप्ट परिणामों के ज्ञान में निवृत्त होता है एवं शुभ भावों के आचरण से लाभ होता है यह जानकर उसमें प्रवृत्त हाता है. यन्मार्ग में उत्साह पैदा होता है. मैत्री आदि शुभ भावांका भी उदभव होता है. क्रांधादि कपायां का नाश होता है. इस प्रकार धर्मकथाए जीवन में अनेक प्रकार में उपयोगी है. इसीलिए महान जनाचार्यों ने एक ओर उच्च काटी के शास्त्र ग्रंथों का निर्माण किया वही दूसरी आंग लोकभाग्य, सरल एवं सुवांध भापा में उपदंशात्मक कथा साहित्य का भी निर्माण किया है. जन कथा साहित्य का संक्षिप्त इतिहास का अवलोकन आवश्यक है. जैन धर्म के मूल शास्त्र ग्रंथ आम है. आम ग्रंथा में जहाँ दर्शन. सिद्धान्त, भूगोल, खगोल आदि विपय का विवेचन प्राप्त होता है वहीं धर्मकथाओं का संग्रह भी प्राप्त होता है. ज्ञाताधर्मकथा नामक अंग आगम में अनक कथाओं का संग्रह प्राप्त होता है. उमम अनक उपदेशात्मक रुपक कथाएँ भी है. जो साधक का प्रेरणा एवं बल प्रदान करती है. उसक अतिरिक्त उपासक दशांग सूत्र एवं उत्तराध्ययन और नंदीसूत्र में भी रोचक कथाएं मिलती है. प्रस्तुत कथा तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थिति का ही निर्देश नहीं करती किन्तु तत तत परिस्थितिओं में साधक आत्मा को अपनी माधना में कैम स्थिर रहना चाहिए उमका स्पष्ट

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