Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 3
________________ चिन्तन-सूत्र ४१ ४७ १. समस्या : असंगति २. धर्म : वस्तुस्वभाव ३. धर्म : पुण्यपापातीत स्थिति ४. ज्ञान : एक आन्तरिक गुण ५. सुख : एक मूलभूत कामना ६. पुण्य : सुख का साधन ७. धर्म : साधन नहीं साध्य ८. भेदाभेद : एक समन्वय ६. सुखान्वेषण : एक इतिहास १०. सुखप्राप्ति : विधिपरकदृष्टि ११. रत्नत्रय : इकाई १२. कषाय : ऋणात्मक शक्तियां १३. कषायनिषेध : पंचव्रत का अमूर्तरूप १४. जीवाजीव : एक अनादि सम्बन्ध १५. मुक्ति : स्वतन्त्रता १६. स्याद्वाद : सम्वाद १७. कालवाद : कालजयी १८. स्वभाववाद : प्रकृतिवादी १६. नियतिवाद : भाग्यजयी २०. पुरुष : अपना भाग्य निर्माता २१. भौतिकवाद : यहच्छावाद २२. जाति, जन्म : पुरुषार्थ २३. पुरुष : ईश्वर और ब्रह्म २४. पञ्चपरमेष्ठी : व्यक्ति २५. सम्यग्दर्शन : सच्चा श्रोता २६. मुनि : ध्यानपद २७. मुक्ति : प्रेम और आनन्द ४८ ५१ ५३ ७५ m

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