Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas Author(s): Gyansundar Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala View full book textPage 9
________________ ( ८ ) जैन जाति महोदय. क्या था! ज्ञानियों के लिये सांसारिक राजसंम्पदा सब काराघर सदृश ही है कुमर तो परम पैराग्य भाषको प्राप्त हो मुनिको वन्दन कर अपने मकानपर आया मातापितासे दीक्षा की रजा मांगी पर १० वर्षका बालक दीक्षामें क्या समजे एसा समज मातापिताने एक किस्म की हांसी समजली पर नब कुमरका मुखसे ज्ञानमय बैराग्य रस रंगमे रंगित शब्द सुना तब मातापिता खुद ही संसारको असार जान पडा पुत्रके राज दे आप अपने प्यारा पुत्र केशीकुमार को साथ ले विदेशी मुनिके पास बडे आडम्बर के साथ जैन दीक्षा धारण कर ली. नयसेन राजर्षि और अनंगसुन्दरी आर्यिका ज्ञान ध्यान तप संयमसे आत्म कल्यान कार्य में प्रवृतमान हुए। केशीकुमर श्रमण जातिस्मरण ज्ञानसे पूर्व पढा हुवा ज्ञानका अध्ययन करते ही तथा विशेष ज्ञानाभ्यास करता हुवा स्वल्प समयमें श्रुत समुद्र का पारगामी हो गया। आचार्य आर्यसमुद्रसूरि अपने जीवन कालमें शासन की अच्छी सेवा करी थी धर्म प्रचार और शिष्य समुदाय में भी वृद्धि करी थी अपनि अन्तिमात्रस्था जान कैशीश्रमण को अपने पद पर नियुक्तकर आपश्री सिद्धक्षेत्रपर सलेखनां करता हुवा १५ दिनोंका अनसन पूर्वक स्वर्गगमन कीया. इति तीसरा पाट. (४) आचार्य आर्यसमुद्रसूरि के पट पर आर्यकेशीम. णाचार्य बालब्रह्मचारी अनेक विद्याओं के ज्ञाता देव देवियों से पूनित जपने निर्मल ज्ञानरूपी सूर्य प्रकाशसे भव्यों के मिथ्यास्वरुप अंधकार को नाश करते हुवे भूमण्डलपर विहार करने लगें इधर दक्षिण विहारी लोहिताचार्य के स्वर्गवास हो जाने के बाद मुनि धर्गमें शिथिलता वा आपसमे कूट पड जानेसे अन्य लोगोंका नौर बढ नाना स्वाभाविक बात है मतमतान्तरों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66