Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 43
________________ ( ४२ ) जैन जाति महोदय. प्र - तीसरा. करना मैथुन और परिग्रहका सर्वता परित्याग करना. सिर का बाल भी हाथोंसे खेचना पैदल विहार करना परोपकारके सिवाय और कोई कार्य नहीं करना पसा मुनियोंका आचार है है राजन् ! इस पवित्र धर्मका सेवन करने से भूतकाल में अनंते जीव जरामरण रोगशोक और संसारके सव बन्धने से मुक्त हो सास्वते सुख जो मोक्ष है उस को प्राप्ति कर लीया था वर्तमान मे कर रहे है और भविष्यने करेंगा वास्ते आप सब सज्जन मिथ्या पाखण्ड मत्तका सर्वता त्याग कर इस शुद्ध पवित्र सर्वोत्तम धर्मकों स्वीकार करो तोकी आप इस लोक परलोकमे सुखके अधिकारी बने किमधिकम् । सूरिजी महाराजकी अपूर्व और अमृतमय देशना श्रवण कर राजा प्रजा एकदम अजब गजब और आश्चर्य में गरक बन गये. हर्ष के मारे शरीर रोमाचित हो गये कारण इस के पहला कभी एसी देशना सुनी ही नहीं थी । राजा हाथ नोड बोला कि हे प्रभो ! एक तरफ तो हमे बड़ा भारी दुःख हो रहा है और दूसरी तरफ हर्ष हमारा हृदय में समा नहीं सक्ता है इस का कारण यह है कि हमने दुर्लभ मनुष्यभव पाके सामग्री के होते हुवे भी कुगुरुओ की वासना की पास मे पड हमारा अमूल्य समय निरर्थक खो दीया इतना ही नहीं परधर्म के नाम से हम अज्ञान लोगोंने अनेक प्रकारका अत्याचार कर मिथ्यात्वरूपो पाप की पोठसिर पर उठाइ वह आज आपश्रीका सत्योपदेश श्रवण करने से ज्ञान हुआ है फिर अधिक दुःख इस बातका है कि आप जैसे परमयोगिराज महात्मा पुरुषोंका हमारे यहां विराजना होने पर भी हम हतभाग्य आप के दर्शनतक भी नहीं किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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