Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 60
________________ श्राचार्य कनकप्रभसूरि. ( ५९ ) होगा वास्ते जातिधर्म बना देना बहुत लाभकारी होगा इस वास्ते सब सांधुओ के कम्मर कस के अन्य लोगों को प्रतिबोध दे दे कर इस जातियों की वृद्धि करना बहुत जरूरी बात है इत्यादि वार्तालाप के बाद कनकप्रभसुरि की तो उपकेशपट्टन की तरफ विहार करने कि आज्ञा दी कनकप्रभसूरिने उपकेशपट्टन पधार के उपलदेवराजा के बनाये हुवे पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाइ इत्यादि अनेक शुभ कार्य्य आपके उपदेश से हुवे और सूरिजीने आप उसी प्रान्त मे व अन्य प्रान्तो मे विहार करने का निर्णय कीया । रत्नप्रभ सूरिने फिर अपने १४ वर्ष के जीवन मे हजारो लाखो नये जैन बनाये जिस्मे पोरवाडो से संबन्ध रखनेवालों को पोरवाडो मे मीला दीया श्रीमालो से सम्बन्ध रखनेवालो को श्रीमालो मे और उपकेश वंस से तालुक रखनेवालों को उपकेश वंश मे मीलाते गये उपकेशपुर के गौत्रो के सिवाय (१) चरड गोत्र ( २ ) सुघड गोत्र ( ३ ) लुग गोत्र ( ४ ) गटिया गौत्र एवं चार गौत्रोंकी और स्थापना करी आपश्रींने अपने करकमलोसे हजारो जैन मूर्तियोकी प्रतिष्टा और २१ वार श्रीसिद्धगिरि का संघ तथा अन्यभो शासनसेवा और धर्म का उद्योत कीया आपश्रीने करीबन १० लक्ष नये जैन बनाये थे. पट्टावलिमें लिखा है कि देविने महाविदह क्षेत्रमें श्री सीमंधर स्वामिसे निर्णय कया था कि रत्नप्रभसूरिका नाम चौरासी चौवीसी मे रहेगा एक भवकर मोक्ष जावेगा इत्यादि... जैन कोम आचार्यश्री के उपकारकी पूर्ण ऋणि है आपश्रीके नाम मात्र से दुनियों का भला होता है पर खेद इस बात का है कि कीतनेक कृतघ्नी एसे अक्ष ओसवाल है कि कुमति के कदागृहमें पडके एसे महान् उपकारी गुरुवर्य के नामतक को भुल बैठे है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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