Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 59
________________ ( ५८ ) जैन जाति महोदय. प्र - तीसरा. से कोरंटपुर जाना से वहां का संघ में मेरे प्रति अभाव हो कनकप्रभ को आचार्य पद स्थापन कीया है वास्ते पहला मुजे वहां जाके उनको शान्त करना जरूरी है कारण गृहक्लेश शासन सेवा मे बाधाए डालनेवाला होता है इस विचार से आप उपकेशपुर से विहार कर सिधे ही कोरंट पुर पधारे आचार्य कनकप्रभसूरि को खबर होनेपर वह बहुत दूर तक संघ को ले कर सामने आये बडै ही महोत्सवपूर्वक नगर प्रवेश कीया भगवान् महावीर की यात्रा करो तत्पश्चात् दोनों आचार्य एक पाट पर विराजमान हो देशनादि और प्रतिष्टापर आप वैक्रय रूपसे आने का कारण बतलाया कि तुमतो हमारे गुरु महाराज के प्रतिबोधित पुरांणे धावक श्रद्धा संपन्न हो पर वहां के श्रावक बिलकुल नये थे जैन धर्मपर उन की श्रद्धामजबुत करणिथी इत्यादि मधुर बचनों से कोरंट संघ को संतुष्ट कर दीया और आपने कनकप्रभसूरि को आचार्य पद दीया यह भी ठीक ही किया है कारण प्रत्येक प्रान्त में पकेक योग्याचार्य होने की इस जमाना में जरूरी है इतने मे कनकप्रभसूरिने अर्ज करी कि हे भगवान्। में तो इस कार्य में खुशी नहीं था पर यहाँ के संघमे अधैर्यता देख संघ वचन को अनेच्छा स्वीकार करना पडा था आप तो हमारे गुरु है यह आचार्यपद आपभी के चरणकमलों मे अर्पण है. इसपर आचार्य रत्नप्रभसूरि संघ समक्ष कनकप्रभसूरि पर वासक्षेप डाल के आचार्य पद कि विशेषता करदी इस एकदीली को देख संघमे बडा आनंद मंगल छा गया बाद जयध्वनी के साथ सभा विसर्जन हुई बाद रत्नप्रभसूरि कनकप्रभसूरिने अपने योग्य मुनिवरों से कहा की भविष्यकाल महा भयंकर आवेगा जैन धर्म का कठिन नियम संसार लुब्ध जीवों को पालन करना मुश्किल. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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