Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 29
________________ ( २८ ) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरां. तेथे में ठीक कहता हु कि आप अपनी कुट नीतिका प्रयोग करोगे तो आपके राजकी आज जो अबादी है वह आखिर तक रहना असंभव है इत्यादि बहुत समजाया पर साथमे ब्राह्मण भीतो राजाकी अनभिज्ञताका लाभ ले जैनोसे बदला लेना चाहाते थे भीमसेनको राजगादी मीली उस समयसे जैनोपर जुलम गुजारना प्रारंभ हुवा आज जैन लोगा पुरी तंग हालतमें आ पडे तब चन्द्रसेन के अध्यक्षत्वमे एक जैनोकी विराट सभा हुइ उसमें यह प्रस्ताव पास हुवा कि तमाम जैन इस नगरको छोड देना चाहिये इत्यादि बाद चन्द्रसेन अपना दशरथ नामका मंत्रीको साथले आबुकी तरफ चलधरा वहांपर एक उन्नत भूमि देख नगरी वसाना प्रारंभकरदीया बाद श्रीमाल नगरसे ७२००० घर जिस्मे ५५०० घर तो अर्वाधिप और १००० घर करीबन् क्रोड' पति थे वह सभी अपने कुटम्ब सह उस नुतन नगरीमें आगये । उस नगरीका नाम चन्द्रसेन रानाके नामपर चन्द्रावती रखदीया प्रज्याका अच्छा जम्माव होने पर चन्द्रसेनको वहांका राज पद दे राज अभिषेक कर दीया. नगरीकी आबादी इस कदर से हुइ की स्वल्प समयमें स्वर्ग सदृश बन गइ राजा चन्द्रसेन के छोटे भाइ शिवसेनने पास ही में शिवपुरी नगरी बसादी वह भी अच्छी उन्नतिपर बस गइ. इधर भीमाल नगरमे जो शिवोपासक थे वह ही रह गये नगरकी हालत देख भीमसेनने सोचा को ब्रह्मणों के धोखा में आके मेने यह अच्छा नहीं किया पर अब पश्चाताप करनेसे होता क्या है रहे हुवे नागरिको के लिये उस श्रीमाल नगरके तीन प्रकोट बनाये पहला में कोडाधिप दुसरा में लक्षापति तीसरा में साधारण लोग एसी रचनाकरके श्रीमाल नगरका नाम भीनमाल रखदीया यह राजा के नामपर ही रखा था कारण उधर चन्द्रसेन ने अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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