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उपकेशपट्टन की स्थापना.
(३३) आबाध हो गया की वहां लाखो घरों की वस्ती हो गई व्यापार का एक केन्द्र स्थान बन गया पास मे मीटा मेहरबान समुद्र भी था वास्ते जल थल दोनों रहस्ते व्यापार चलता था राना की तरफ से व्यापारीयों को बड़ी भारी सहायता मीलती थी नहां व्यापार की उन्नति है वहां राजा प्रजा सब की उन्नति हुवा करती है इति उपकेशपट्टन स्थापना सम्बन्ध ।
__ आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि अपने ५०० मुनियों के साथ मू. मण्डल को पवित्र करते हुवे क्रमसे उपके शपट्टन पधारे वहां लुणाद्री छोटीसी पहाडीथी वहां ठेर गये " मासकन्प अरण्ये. स्थिता" एक मासकी तपश्चर्या कर पहाडीपर रहे पर किसी एकबच्चातकने भी सूरिजी की खबर न लो. बाद केइ मुनियों के तप पारणा था वह भिक्षाके लिये नगर में गये "गोचर्या मुनीश्वरा व्रजंति परंभिक्षा न लभते लोकामिथ्यत्व वासिता यादृशा गता तादृशा आगता मुनीश्वराः तपोवृद्धि पात्राणि प्रतिलेष्यमास यावत संतोषेण स्थिताः नगरमे लोग वाममागि देवि उपासक मांस मदिरा भक्षी होनेसे मुनियों को शुद्ध भिक्षा न मीलनेपर जैसे पात्रे ले के गयेथे वसेही वापिस आगये मुनियों ने सोंचा कि आज और भी तपोवृद्धि हुइ पात्रोका प्रतिलेखन कर सतोषसे अपना ज्ञानध्यानमे मग्न हो आत्मकल्यानमें लग गये । इसपर (१) यति रामलालजी महाजनवंश मुक्तावलिमें लिखते है कि रत्न प्रभसूरि एक शिष्य के साथ आये भिक्षा न मिलनेसे गृहस्थों की औषधी कर भिक्षा लातेथे. और (२) सेवगलोग कहते है कि उन मुनियों को भिक्षा न मीलनेसे हमारे पूर्वजोंने भिक्षा दी थी (३) भाट भोजक कहते है कि भिक्षा न मीलने पर आचा
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