Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 33
________________ (३२) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. द्वादश योजन नगरी जाता" इस के सिवाय केह प्राचीन कषित भी मीलते है । " गाडी सहस गुण तोस, रथ सहस इग्यार अठारा सहस असवार, पाला पायक को नहीं पार ओठी सहस अठार, तोस हस्ती मद झरंता दश सहस दुकान, कोड व्यापार करता पंच सहस विप्र भीनमाल से, मणिधर साथे माडिया." शाहा उहडने उपलदे सहित, घर बार साथे छांडिया ॥१॥ अगर उपलदे व और ऊहड के कुटुम्ब अटारा हजार और शेष बाद में आया हो पर यह तो ठीक है कि भिन्नमाल तुट के उएशपट्टन बसी है । मूळ पट्टावलिमें नगर का विस्तार बारह योजन का है साथ में मंडोवर भी उस समय में मोजुद थी उएश का नाम संस्कृत ग्रन्थ कारोने उपकेशपट्टन लिखा है उएश का अपभ्रंश " ओशीयों हुवा है दन्तकथाओं से ज्ञात होता है कि ओशीयों से १२ मिल तिवरी तेलीपुरा था ६ मिल खेतार क्षत्रिपुरा था २४ मिल लोहावट ओशीयों को लोहामंडी थी ओशीयों से २० मिल पर घटियाला ग्राम है वहां पर दरवाना था जिसके पुरांणे कुच्छ चिन्ह अभी भी खोद काम से मिलते है थोडॉ हो वर्षा पहला तिवरी के पास खोद काम करतो एक शिखरबंद्ध जैन मन्दिर जमीन से निकला है इत्यादि प्रमाणों से उएश नगरी इतिनी बडी हो तो असंभव नही है-दूसरा यह भी तो है कि जहां चार पांच लक्ष घरों की संख्या हो वह बारह योजन विस्तार में नगरी हो तो एसा कोई आश्चर्य भी नहीं है । नूतन वसा हुवा उप के शपट्टन थोडा ही वर्षों में इतना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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