Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 28
________________ उपवेशपट्टन की स्थापना. ( २७ ) बस्था में मंत्रियों उमरावो को खानगीमे यह सूचन करदोथी की मेरे पीच्छे राजगादी चन्द्रसेन को देना कारण वह राज के सर्व काय्र्यो में योग्य है फिर राजातो अरिहंतादि पंचपरमेष्टि का स्मरण पूर्वक मृत्युलोग और नाशमान शरीर का त्याग कर स्वर्गकी तरफ प्रस्थान कर दीया. यह सुनते ही नगर मे शोक के बादल छा गये. हाहाकार मचगया, सबलोगोने मिलके राजाकी मृत्युक्रिया वडाद्दी समारोह के साथ करी बाद रातगादी बेठाने के विषय मे दो मत हो गया एकमत का कहनाधा कि भीमसेन बडा है वास्ते राजका अधिकार भीमसेनको है दूसरा मत था की महाराज जयसेनका अन्तिम कहना है कि राज चन्द्रसेन को देना और चन्द्रसेन राजगुण धैर्य गांभिर्य वीरता - प्राक्रमी और राज तंत्र चलाने मे भी निपुण है इन दोनो पार्टियोके बाद विवाद तर्क वाद यहां तक बडगबाको जिस्का निर्णयकरना भुजबलपर आपडा पर चन्द्रसेन अपने पक्षका - रोको समनादीया की मुझे तो राजकी इच्छा नहीं है आप अपना हटको छोड दीजिये. गृह कलेशसे भविष्य में बड़ी भारी हानी होगा इत्यादि समझाने पर उनने स्वीकार कर लिया बस । फिर थाहो क्या ब्रह्मणों का और शिवोपासकोका पाणि नौ गज चढ गया बडी धामधूमसे भीमसेनका राजाभिषक हो गया. पहला पहल ही भीमसेनने अपनि राज सताका जौर जुलम जैनोपर हो जमाना शरु कोया कभी कभी तो राजसभामेभी चन्द्रसेन के साथ धर्म युद्ध होने लगा । तब चन्द्रसेन ने कहा कि महाराज अब आप राजगादीपर न्याय करने को विराजे है तो आपका फर्ज है की जैनोको और शिवोको एक ही दृष्टि से देखे जैसे महाराजा जयसेन परम जैन होने पर भी दोनो धर्म वालोको सामान दृष्टिसे ही देख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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