Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 15
________________ (१४) जैन जाति महोदय. पाकर व्याख्यान श्रवण करने को आये करते थे-एक समय आचार्य श्री संघ के साथ सिद्धाचलजी की यात्राकर अबुंदा. चलकी यात्रा करनेको आये थे वहांपर व्यापार निमित्त आये हुवे श्रीमालनगर के कितनेक शेठ शाहुकार सूरिजी की अहिंसामय दशना श्रवण कर विनंति करी कि हे भगवान् । हमारे वहां तो प्रत्येक वर्ष में हनारो लाखो पशुओंका यज्ञमें बलिदान हो रहा है और उसमें ही जनता की शान्ति और धर्म माना जाता है आज आपका उपदेश श्रवण करनेसे तो यह ज्ञात हुवा है कि यह एक नरकका ही द्वार है अगर आप जैसे परोपकारी महात्माओंका पधारना हमारे जैसे क्षेत्रमें हो तो वहां की भद्रिक जनता आप के उपदेशका अवश्य लाभ उठावे इत्यादि विनंति करनेपर सूरिजीने उसे सहर्ष स्वीकार कर ली जैसे चितसारथी की विनंति को कैशीश्रमणने स्वीकार करी थी। समय पाके सूरिजी क्रमशः विहार कर श्रीमालनगर के उद्यान में पधार गये जिन्होंने अर्बुदाचल पर विनंति करी थी वह सजन अपने मित्रोंके साथ सूरिजी की सेवा उपासना करनेमे तत्पर हो सब तरह की अनुकूलता करदी उसी दिनोंमें श्रीमालनगरमें एक अश्वमेघ नामका यज्ञ की तयारी हो रही थी देशविदेश के हजारों ब्राह्मणाभास एकत्र हुवे इधर हजारों लाखो निरापराधि पशुओंको एकत्र कीये है एक वडा भारी यज्ञ मण्डप रचा गया था घर घरमें बकारा भैंसा बन्धा हुवा है कि उनका यज्ञमें बलिदान कर शान्ति मनाचेंगे इत्यादि । इधर सूरिनी के शिष्य नगरमें भिक्षा को गये नगरका हाल देख वापिस आ गये। सूरिजी को अर्ज करी कि हे भगवान् ! यह नगर साधुओं को भिक्षा लेने लायक नहीं है सब हाल सुनाया सूरिजी अपने कितनेक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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