Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 21
________________ (२०) जैन जाति महोदय. प्र- तीसरा. शीघ्रगामनी शांडणी की सवारी कर पद्मावती की तरफ रवाना हो गये सूरिजी महाराज सवेरे अपनि मुनि क्रिया से निवृति पाते ही विद्याबल से एक मुहुर्तमात्रमें पद्मावती पहुंच गये सिधे ही राजसभा में गये इतने में श्रीमाल नगर के श्राद्धवर्ग भी वहां पहुंच गये श्रीमाल की बात सब नगर में फेल गई-रान सभा चिकारबद्ध भरा गई सूरिजीने तो वह ही ' अहिंसा परमो धर्म:' पर विवेचन कर व्याख्यान दीया इस पर ब्राह्मणभासोने कहा महात्माजी यहाँ श्रीमाल नगर नहीं है कि आप का उपदेश श्रवण कर स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति वाला यज्ञ करना छोड दे ? सूरिजीने कहा महानुभावों न तो में श्रीमाल नगरसे पोट बन्ध लाया हुं न मेरे को यहांसे कुच्छ ले नाना है में तो रहस्ता भुला हुवा को सद् रहस्ता बतला रहा हुं और सदुपदेशद्वारा जनताका कल्याण करना मेरा कर्तव्य समज्ञता हुं जैसे की " तुष्यन्ति भौजनैविप्राः मयूर घन गर्जितः । साधवः पर कल्याणः खल पर विपत्ति भिः ॥" सूरिजीने भाव यज्ञ का व्याख्यान करते हुवे कहा कि" सत्य यूपं तपो ह्यग्निः कर्माणा. समिद्योमम् । अहिंसामहुति दद्या. देव यज्ञ सतांमतः ॥ ". सत्य का यूप तप की अग्नि कर्मा की समाधी ( लकडीयों) और अहिंसा रूपी आहुति से आत्मा कि साथ चिरकाल से कर्म लगा हुवा है उन को होम कर आत्मा को पवित्र बनाना विनों का धर्म बितलाया है इस यज्ञ से जीव स्वर्ग मोक्ष को प्राप्त हो सकता है। हे विनों तुम पशु हिंसा रूप मिथ्या यज्ञ कर खुद रौद्र नरक में जाने का प्रबन्ध करते हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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