Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 20
________________ सूरिजी और श्रीमाल. करदो कि कोई भी शक्स कीसी प्राणिको मारेगा उसे प्राणि के बदले अपना प्राण देना पडेगा. राजा अहिंमा भगवती का परमोपासक बन गया । फिर आचार्य बीने जैनधर्म का स्वरुप मुनि या श्रावक धर्म का वर्णन कर विस्तारपूर्वक सुनाया फल यह हुवा की वहांपर ९०००० घरों वालोने जैन धर्म को स्वीकार कर आचार्यश्री के चरणोपासक बन गये. आगे चलकर इस श्रीमालनगर के जैन लोग अन्योन्य नगरमें निवास कीया तब नगर का नामसे इन जैनो की श्रीमाल जाति प्रसिद्ध हुई* श्रीमालनगरके लोगोंने सुरिजीसे अर्ज करी कि हे करुणासिन्धु । आप के यहाँ पधारनेसे हजारो लाखो पशुओं को अभयदान मीला और क्रूर कर्मरूपि मिथ्यामत्त सेवन कर नरकमे जाने वाले जीवो को सम्यक्त्व रत्न की प्राप्ति हुई स्वर्ग मोक्ष का रहस्ता मीला अर्हन्त धर्म की बडी भारी प्रभावना हुई आप का परमोपकार का बदला इस भवमें तो क्या पर भवो भवमें देना हमारे लिये अशक्य है आपकी सेवा उपासना क्षणभर भी छोडनी नहीं चाहते है तधपि एक अरज करना हम बहुत जरूरी समजते है वह यह है की आवु के पास पद्मावती नामकी नगरी है वहां का राजा पद्मसेनने भी देवी के उपद्रब को शान्ति करने के हेतु अश्वमेघ यज्ञ का प्रारंभ कीया है कल पूर्णिमा का वह यज्ञ है अगर यहां पर आप श्रीमानों के पधारना हो जाय तो जैसा यहां लाभ हुघा है वैसा ही वहां भी उपकार है । सुरिनीने इस वात को सहर्ष स्वीकार करलि और संघ को कह दीया की हम कलशुभे ही पद्मावती पहुंच जावेंगे. गृहस्थ लोगोंने * देखो नोट नम्बर १. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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