Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 12 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 9
________________ अङ्क १२ ] शिलालेखों से मालूम होता है कि, विष्णुयशोधर्माने किसी सुविख्यात राजकुल में जन्म नहीं लिया था और पुराणों में विष्णुयशा भी एक साधारण आदमी के पुत्र बतलाये गये हैं । दोनों ने ही बड़े भारी साम्राज्यकी स्थापना की थी । कल्कि अवतारकी ऐतिहासिकता । इस तरह दोनों में सब बातों में इतनी एकता देखी जाती है कि फिर इन दोनोंके एक होने में कोई भी सन्देह बाकी नहीं रह जाता है । इस विषय में कुछ और भी प्रमाण मिले हैं जिनसे कल्किकी ऐतिहासिकता अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है : १ बंगाली कवि चण्डीदास के समयतक ( चौदहवीं शताब्दि ) इस तरहका विश्वास जम रहा था कि, बुद्ध और अन्यान्य अवतारोंके समान कल्कि भी भूतकालमें हो चुके हैं। यथा“ कल्किरूपे तोक्षे दलिले दुष्टजन " – ( बंगीय साहित्य परिषत् पुस्तकालय के चण्डीदासकृत हस्तलिखित ' कृष्णकीर्तन ' ग्रन्थसे ।) इससे जान पड़ता है कि कल्कि भविष्यतमें होनेवाले हैं, यह विश्वास बहुत प्राचीन नहीं है । २ तेरहवीं शताब्दि के जयदेवने भी कल्कि - को भूतकालका अवतार माना है । यथा“केशवधृतकल्किशरीर । " ३ कल्किपुराणके पाठसे मालूम होता है कि, उसमें कल्किकी जीवनकी सारी ही घटनायें भूतकाल के रूपमें वर्णन की गई हैं। जैसे कि कल्किके जन्मसम्बन्धमें कहा है પર ग्धरूपसे स्थापित होता है । जिनसेन नामके जैनाचार्यने शक संवत् ७०६ में ' हरिवंश ' नामक ग्रन्थ बनाया है । उसमें राजाओंके कालपरिमाणके समय में जो कुछ कहा है वह भारतवर्षके इतिहास में बहुत ही मूल्यवान् है: द्वादश्यां शुक्लपक्षस्य माधवे मासि माधवम् । जातं ददृशतुः पुत्रं पितरौ हृष्टमानसौ ॥ - अ० २ श्लो० १५ । ततः स ववृधे तत्र सुमत्या परिपालितः । अ० ३, श्लो० ३०॥ ४ इस चौथे प्रमाणके द्वारा कल्किकी ऐतिहासिकता और उनका आविर्भावकाल निःसन्दि वीरनिर्वाणकाले च पालकोऽत्राभिषिक्ष्यते । लोकेऽवन्तिसुतो राजा प्रजानां प्रतिपालकः ॥ षष्टिवर्षाणि तद्राज्यं ततो विजयभूभुजाम् । शतं च पञ्च पञ्चाशद्वर्षाणि तदुदीरितम् ॥ चत्वारिंशन्मुरुण्डानां भूमण्डलम खण्डितम् । त्रिंशत्तु पुष्यमित्राणां षष्टिर्वस्वग्निमित्रयोः ॥ शतं रासभराजानां नरवाहनमप्यतः । चत्वारिंशत्ततो द्वाभ्यां चत्वारिंशच्छतद्वयम् ॥ भवाणस्य तद्राज्यं गुप्तानां च शतद्वयम् । एकत्रिंशच्च वर्षाणि कालविद्भिरुदाहृतम् ॥ द्विचत्वारिंशदेवातः कल्किराजस्य राजता । ततोऽजितंजयो राजा स्यादिन्द्रपुरसंस्थितः ४८८ - ९३ - अध्याय ६० एक जगह जिनसेन शकाब्दकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें कहा है: वर्षाणां षट्शतीं त्यक्त्वा पञ्चा मासपञ्चकम् । मुक्ति गते महावीरे शकराजस्ततोऽभवत् ॥ इन सब श्लोकों से मालूम होगा कि जिनसेनकल्किराजाको गुप्त राजाओंके चालीस वर्ष बाद और महावीर स्वामीसे ९९० वर्ष बाद स्थापित किया है; अर्थात् उनकी गणनाके अनुसार कल्किका राज्यकाल शक संवत् ३८५ ( ई० सन् ४६३ ) से आरंभ होता है । इससे मेरा निश्चित किया हुआ पाँचवीं शताब्दीका शेष भाग ही कल्किका अभ्युदयकाल पाया जाता है और उक्त समयसे केवल ३०० वर्ष बादके एक ग्रन्थ में यह वर्णन मिलता है । गुप्त राजाओंके बाद ही कल्किका समय बतलानेसे जान पड़ता है कि ईस्वी सन ४६० के लगभग गुप्तसाम्राज्य के नष्ट होजानेPage Navigation
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