Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 10
________________ ५२२ जैनहितैषी [भाग १३ पर उनका अभ्युदय हुआ। पुराणोंके उल्लेखोंकी चीन है और इसलिए ऐतिहासिक दृष्टिसे इसकी मैंने जैसी व्याख्या की है, उसके साथ यह गाथाओंकी प्रामाणिकता और भी अधिक है। जैनबात मिल जाती है। ग्रन्थोंमें कल्किका नाम चर्तुमुख, उसके पिताका नाम इन्द्र और पुत्रका नाम अजितंजय मिलता है। इस जिनसेनने कल्किको जैनौके प्रबल शत्रुके विषयमें सभी जैनग्रन्य एकमत है; परन्तु हिन्दु. रूपमें वर्णन किया है । कल्किपुराणमें भी इसी ओंके पुराणग्रन्थों में उसका नाम विष्णुयशः और प्रकार लिखा है। उसके पिताका नाम देवसेन मिलता है । पुत्रका इस लेखमें हमने दो बातोंको सिद्ध किया है- उल्लेख नहीं है । मृत्युसम्बन्धी घटनाके विषयमें भी एक तो यह कि पुराणवर्णित कल्कि एक ऐति- मतभेद है । इधर प्रो० पाठकने मिहिरकुलको हासिक व्यक्ति है और दूसरी यह कि वह संभ- कल्कि सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है। पाठक महावतः विष्णुवर्द्धन यशोधर्मा है। दूसरी बातके शयके लेखका सारांश आगे दिया जाता है। श्वेतासम्बन्धमें सन्देह रह सकता है। परन्त पहली म्बर ग्रन्थाम कल्किके सम्बन्धमें कुछ और ही लिखा है। वह भी उपस्थित है। आशा है कि श्रीयुत जायबातमें कोई भी सन्देह नहीं है। हम समझते हैं, सवाल महाशय और दूसरे पुरातत्त्वज्ञ इन सब बातोंभारतके इतिहासमै कल्किका स्थान चन्द्रगुप्तका पर विचार करनेका कष्ट उठायँगे। सम्पादक , अपेक्षा नीचा नहीं है । धर्म और समाजकी - दृष्टिसे कल्किका स्थान बहुत ही ऊँचा है । गुप्तसाम्राज्यके नष्ट होने पर जब अनेक प्रकारके गुप्त राजाओंका काल. मिहिरविदेशी म्लेच्छ राजा भारतकी सभ्यता और कल और ति। कुल और कल्कि। . धर्मको उच्छेद करनेके लिए उद्यत हो गये, उस .. समय कल्कि नष्टप्राय जातीय सभ्यताका पुनरुद्धार करनेके लिए उठा और भारतके अनेक अभी कुछ समय पहले भाण्डारकर इन्स्टिराजाओंको एकतासूत्रमें बाँधकर ( कल्किपुराण ट्यूटकी स्थापनाके समय डा० भाण्डारकरको अध्याय २ का तीसरा अंश ) उसने धर्मद्रोहि- एक ऐतिहासिक ग्रन्थ अर्पण किया गया था. योंका नाश किया। वह एक तरफसे मेजिनी था उसमें श्रीयुत पं० काशीनाथ बापूजी पाठक और दूसरी ओरसे नेपोलियन । अबतक भारत- बी. ए. का एक महत्त्वका लेख प्रकाशित हुआ वर्षका छट्ठी शताब्दिका इतिहास जिस अन्धका- है, जिसका सारांश हिन्दी चित्रमयजगत् ' रमें निमग्न था, वह कल्किके इतिहासके द्वारा परसे नीचे उद्धृत किया जाता है:बहुत कुछ दूर हो जायगा और कल्किके अम्यु. , प्राचीन कालमें उत्तर भारतमें गुप्तवंशके बड़े देयके परवर्ती कालके राष्ट्र, धर्म और समाजका शक्तिशाल शक्तिशाली राजा हो गये हैं। उन्होंने लगभग दो स्वरूप कल्किके इतिहासके द्वारा अधिक स्पष्ट सौ वर्ष राज्य किया था। राज्य करनेकी उनकी तासे समझा जा सकेगा। उत्तम थी, इस कारण उस समय भारत नोट । कल्किके सम्बन्धमें हरिवंशपुराणके जो देश बड़े वैभवके शिखर पर चढ़ा था । धनधान्यश्लोक उद्धृत किये गये हैं उनसे भी पुरानी गाथायें की खूब समृद्धिं थी, अतएव देशकी खब 'त्रिलोकप्रज्ञाप्ति' नामक ग्रन्थकी हैं जो हमने लोक- उन्नति हुई थी । उस समय प्रचलित धर्मों में विभाग और त्रिलोकप्रज्ञप्ति' शीर्षक लेखमें उद्धृत की हिन्दूधर्म, बौद्धधर्म और जैनधर्म मुख्य थे। देशहैं। यह प्रन्थ हमारी समझमें हरिवंशपुराणसे प्रा. में शान्ति छाई हुई थी। इस कारण लोग खूब

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