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अङ्क १२ ]
बाबाजीका स्वभ
बाबाजीका स्वम |
( लेखक, श्रीयुत ठाकुरदासजी विद्यार्थी । ) (9) सन्ध्यासमय एक बाबाजी, सायं कृत्य समापन कर
लुढ़क रहे निद्राभिभूत हो, एक कूपके तट ऊपर । लगे देखने स्वप्न हो गया ब्याह एक युवतीके संग;
हुए व्यतीत बहुत दिन इस विधि, रहे रँगे रमणीके रंग । ( २ )
वर्द्धमान इस प्रणाय-वृक्षका, एक मधुर फल पुत्र हुआ;
इस सुतसे विभक्त भी उनमें, प्रणय-वेग नित वृद्ध हुआ । शिशु जब दबने लेगा बीचमें, लेटे थे वे दोनों ओर;
कहने लगी कान्तसे कान्ता-" जरा खिसक जाओ उस ओर " । ( ३ )
लेटे लेटे लगे खिसकने, वहाँ कूपमें पतित हुए;
अस्थि-योग व्युच्छिन्न हुए सब, क्षणमें जीवनरहित हुए । 'प्रबल वासनायें मानवकी, सोतेमें भी पास रहें ।
करें अनिष्ट अनन्त, अन्तमें, उसका सत्यानाश करें ॥
श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थोंमें / arooar वर्णन |
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[ लेखक, श्रीयुत मुनि जिनविजयजी । ] कल्कि राजाके विषयमें दिगम्बर जैन ग्रंथों में जो 'कुछ लिखा हुआ है, उसका परिचय, पाठकोंको इसी अंक में प्रकाशित हुए श्रीयुत काशीप्रसादजी जायसवाल के लेख से और 'लोकविभाग तथा त्रिलोकप्रज्ञप्ति' शीर्षक संपादकीय - लेखसे हो जायगा । प्रेमीजीकी इच्छा हुई कि श्वेताम्बरसंप्रदायके ग्रन्थों में इस विषय में क्या लिखा गया है, सो भी पाठकों का मालूम हो जाना चाहिए, अतएव 'इस लेखके लिखनेकी आवश्यकता हुई।
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कल्कि के वर्णनवाले जितने श्वेताम्बरीय ग्रंथ हमारे देखने में आये हैं, उनमें सबसे पुराना ग्रन्थ महावीरचरियं विक्रमसंवत् ११४१ का बना हुआ है । यह प्राकृत भाषामें है और इसके रचयिता अम्बदेव उपाध्यायके शिष्य नेमिचन्द्र आचार्य हैं । इसके अंतभागमें, गौतम गणधर के पूछने पर श्रमण भगवान् महावीरदेव पंचमकालका स्वरूप वर्णन करते हुए कहते हैं:छहिं वासाणसएहिं पंचहि वासेहिं पंचमासेहिं । मम निव्वणगयस्स उ उप्पज्जिएसइ सगो राया ॥ तेरसवाससहिएहिं नवुत्तरेहिं सगाउ कुसुमपुरे । होही ककी पन्ते कुलम्म केउव्व दुट्टप्पा ॥
अर्थात् - " हे गोतम, मेरे निर्वाणकाल बाद ६०५ वर्ष और ५ महीने बीतने पर राजा उत्पन्न होगा और उसके १३०९ वर्ष