Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ - जैनहितैषी [भाग १३ कल्किके बादके वर्णनमें लिखा है कि- पर साथ ही हम देखते हैं कि जब दिगम्बरीय " दत्तो य राया बावत्तरि वरिसाउ पडिदिणे कथनमें बहुत कुछ ऐतिहासिक तत्त्व मौजूद जिणचेइयमंत्यिं मही काही . लोगं च सुहियं है-जैसा कि श्रीयुत जायसवालजीने और प्रो० काहि त्ति । दत्तस्स पुत्तो जियसत्तू तस्स वि के. बी. पाठकने अपने लेखोंमें सिद्ध किया हैमेहघोसो । कक्कि अणंतर महानिसीहं न वट्ठि- तब श्वेताम्बरीय कथनमें कोई तत्त्व नजर नहीं स्सइ । दावाससहस्सटिइणो भासरासीगहस्स पीडाए आता। महावीरकी १०वीं शताब्दिकी अपेक्षा नियत्ताए य देवावि दंसणं दाहिति । विज्जा-२०वीं शताब्दि हमारे बहुत निकट है। मंता य अप्पेणवि जावाइणा पहावं दसिस्संति, ओहि- उसके ऊपर केवल ५ ही शताब्दियोंकी तहें णाणं जाइसरणाइ भावाय किंचि पयहिस्सति ।". जमी हुई हैं और इन तहोंका हाल हमें बहुत अर्थात्-कल्किका पुत्र दत्त ७२ वर्षतक कुछ ज्ञात है, अतः इनके नीचे दबी हुई चीजोंको लगातार जैनमंदिर बनवाता रहेगा और लोगों- हम सुलभताके साथ देख सकते हैं, अथवा यों को सुखी करेगा । उसका पुत्र जितशत्रु होगा कहें तो भी चल सकता है कि इनके नीचे और उसका मेघघोष । कल्किके बाद ‘महा- ऐसी कोई मोटी चीज नहीं दबी हुई है जो निशीथसूत्र ' लुप्त हो जायगा । महावीरके नि- हमसे अज्ञात हो। ऐसी दशामें, यह कहना पड़ेगा वर्वाणकाल पर दो हजार वर्षकी स्थितिवाला कि श्वेताम्बरीय ग्रंथोंका भविष्यकथन सत्य नहीं ' भस्मरासी' नामका ग्रह है । उसके उतर निकला । और इसी प्रकार दिगम्बरीय कथनके जाने पर देव भी मनुष्योंको दर्शन देंगे, भी एक भागका वही हाल है । क्यों कि दिगविद्या-मंत्र आदि भी अपना प्रभाव दिखावेंगे, और म्बरग्रन्थोंके अनुसार पाँचवें कालके प्रत्येक अवधिज्ञान तथा जातिस्मरण आदि ज्ञानके भाव १००० वर्षोंके अंतमें एक एक कल्कि और भी कुछ कुछ मालूम पड़ेंगे। प्रत्येक ५०० वर्षोंके अंतमें एक एक उपकल्कि ____ इसी प्रकारका कथन और और ग्रंथों में भी होगा । पर यह भविष्यवाणी ठीक नहीं उतरी । है । दिगम्बरीय कथन और श्वेताम्बरीय कथनमें श्वेताम्बरीय ग्रन्थोंमें कल्किका जो समय वर्ण्यवस्तुमें अधिक अन्तर न होने पर भी समय- दिया है वह दिगम्बरीय ग्रंथोंके हिसाबसे दूसरे कथनमें बहुत अन्तर है । दिगम्बरग्रंथकार कल्किका समय है । अतः दिगम्बरीय कथनके जब कल्किका आविर्भावमहावीर निर्वाणसे एक अनुसार भी महावीरकी २० वीं शताब्दिमें एक हजार वर्ष पीछे बताते हैं, तब श्वेताम्बर वीर- कल्कि होना चाहिए। निर्वाणकी २० वीं शताब्दी में । जिन जिन दिगम्बर ग्रंथकारोंने महावीर की १० वीं दिगम्बर ग्रन्थोंमें यह वर्णन है वे प्रायः महावीर- शताब्दिवाले जिस कल्किका वर्णन किया है, निर्वाणसे १००० वर्ष बादहीके बने हुए हैं, उसका जिक्र श्वेताम्बरोंने क्यों नहीं किया, यह अतः उनके कर्ताओंका विश्वास था कि कल्कि बात भी खास तौरसे विचारने लायक है। कल्किहो चुका । परंतु जिन श्वेताम्बरीय ग्रंथोंका का वर्णन करनेवाले, त्रिलोकप्रज्ञाप्ति, हरिवंशऊपर उल्लेख किया है, वे ग्रंथ महावीरकी २० वीं पुराण और उत्तरपुराण आदि दिगम्बरीय ग्रंथ, शताब्दिके पूर्वके बने हुए हैं, अतः उनके रच- महावीरचरित्र और तीर्थकल्प आदि श्वेताम्बयिताओंका विश्वास भविष्यत्के ऊपर अवलंबित रीय ग्रंथोंसे निश्चय ही पूर्व में बने हैं, तब क्या था। यह बात खास तौरसे ध्यान देने योग्य है। हेमचन्द्राचार्य और जिनप्रभसूरिको उन दिग

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50