Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 20
________________ ५३२ जैनहितैषी [ भाग १३ और भद्रबाहु ये पाँच पुरुषश्रेष्ठ चतुर्दशपूर्वधारी लोह ये चार आचार्य आचारांगके धारक हुए । कहलाये। ये द्वादशांगके ज्ञाता थे। इन पाँचोंका शेष कुछ आचार्य ग्यारह अंग चौदह पूर्वके एकत्रित समय एक सौ वर्ष होता है। इनके बाद एक अंशके ज्ञाता थे। ये सब ११८ वर्षमें भरतक्षेत्रमें इस पंचम कालमें और कोई श्रुतकेवली हुए । * इनके बाद भरतक्षेत्रमें कोई आचारांनहीं हुआ ॥ ७२-७४॥ वा गधारी नहीं हुआ। गोतमगणधरके बाद यहाँ पढमो विसाह णामो पुहिलो खत्तिओ जओ णागो। तक ६८३ वर्ष हुए। यथा:सिद्धत्थो धिदिसणो विजओ बुद्धिल्ल गंगदेवा य॥७५॥ ६२ वर्षमें ३ केवलज्ञानी एक्करसो य सुधम्मो दसपुव्वधरा इमे सुविक्खादा । १००"" ५ श्रुतकेवली पारंपरिउवगमदो तेसीदिसदं च ताणवासाणि ॥ ७६॥ १८३ " " ११ ग्यारह अंग और दशपूर्वधारी सव्वे सु वि कालवसा तेसु अदीदेसु भरहखेत्तमि । २२० "" ५ ग्यारह अंगके धारी वियसंतभव्वकमला ण संति दसपुव्विदिवसयरा ॥७७॥ ११८॥" ४ आचारांगके धारी अर्थ-विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिल्ल, गंगदेव और ६८३ छः सौ तिरासी वर्ष । सुधर्म ये ग्यारह आचार्य दशपूर्वके धारी विख्यात वीस सहस्सं ति सदा सत्तारस वच्छराणि सुदतित्थं । हुए। ये सब एकके बाद एक १८३ वर्षमें हए। धम्मपयट्टणहेदू वेच्छिस्सदि कालदोसेण ॥ ८३ ॥ तेत्तियमेत्ते काले मिस्सदि चाउरणसंघाओ। इन सबके कालवश होनेपर भरतक्षत्रमें भव्य अविणीदुम्मेधाविय असूयको तहय पाएण ॥ ८४ ॥ रूपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेवाले दशपूर्व के सत्तभयअहमदेहि संजुत्ता सल्लगारववरेएहिं । . धारक सूर्य फिर नहीं हुए ॥ ७५-७७ ॥ कलहपिओ रागट्ठो कूरो कोहादुओ लोहो ॥ ८५ ॥ णक्खत्तो जयपालो पंडुअ धुवसेण कंस आइरिया । ण कस आइरियो । अर्थ-(पंचमकाल २१००० वर्षका है। एक्कारसंगधारी पंच इमे वीरतित्थम्मि ॥ ७८ ।। . इसमें ६१३ वर्ष तक श्रुतज्ञान रहा, अतएव शेषके) दोणिसया वीसजुदा वासाणं ताण पिंडपरिमाण । २०३१७ वर्ष तक धर्मप्रवृत्तिका हेतुभूत श्रुततेसु अतीदे णत्थि हु भरहे एक्कारसंगधरा ॥७९॥ । तीर्थ कालदोषसे विच्छिन्न रहेगा । इतने समय ___अर्थ-नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन, और तक चातुर्वर्ण संघ ( मुनिसमूह ) में प्रायः अवि. कैस ये पाँच आचार्य ग्यारह अगाके धारक नीत, दुर्बद्धि, ईर्षाल, सात भय आठ मदों और हुए। इनके समयका एकत्र परिमाण २२० शल्यादिसे युक्त, कलहप्रिय, रागी, क्रूर, क्रोधी वर्ष होता है । इनके बाद ग्यारह अंगका धारक और लोभी मुनि उत्पन्न होंगे ॥ ८३-८५॥ और कोई नहीं हुआ। . * श्रुतावतार ( इन्द्रनन्दिकृत ) में सुभद्रादि चारों पढमो सुभद्दणामो जसमद्दो तह य होदि जसवाहू। . आचार्योंका ही समय ११८ वर्ष बतलाया है, उसमें तुरियो य लोयणामो एदे आयारअंगधरा ॥ ८॥ । ८०॥ अंग-पूर्वाशज्ञानियोंका समय शामिल नहीं मालूम सेसेक्करसंगाणि चोद्दस पुत्राणमेक्कदेसधरा। .. होता। पर यहाँ उनका समय शामिल बतलाया है। एक्कसय अद्वारस वासजुदं ताण परिमाणं ॥ ८१॥ श्रुतावतारमें अंशज्ञानियोंके विनयंधर, श्रीधर, शिवतेसु अदीदेसु तदा आचारधरा ण होति भरहंमि।। दत्त, अर्हद्दत्त ये चार नाम भी बतलाये हैं। पर गोदममुणि पहुदीणं वासाणं छस्सदाणि तेसीदी ॥४२॥ इनका समय जुदा नहीं दिया है। इससे जान पड़ता 'अर्थ-सुभद्, यशोभद्र, यशोबाहु, और ह कि इनका समय उन ११८ वर्षों में ही शामिल है।

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