Book Title: Jain Dharm aur Murti Puja
Author(s): Virdhilal Sethi
Publisher: Gyanchand Jain Kota

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Page 14
________________ इस संसार की विषय वासनाओं में इतने फंसे हुए हैं कि गुणी के आश्रय के बिना गुणका उनके विचार तक में आना असंभव है । ऐसी अवस्था में चितवन तो हो ही कैसे सकता है, क्योंकि गुण गुणी वस्तु के आश्रय के विना संसार में कहीं भी नहीं पाया जाता । जैसे उष्णता एक गुण है किन्तु हमको उसका मान उष्ण वस्तुओं के द्वारा ही होसकता है, वस्तुओं से अलहदा उसको हम कहीं भी नहीं पासकते तथा जहां हम उस गुणी वस्तु को देखते या स्मरण करते हैं कि उसके गुण हूं, तब संशय, भय आदि सब जाते रहते हैं और उस की श्रात्मशक्तियाँ विकसित होने लगजाती है। आप अपने आपको जबतक दुखी समझकर दुःख के विचारों में ही लगे रहेंगे तबतक दुःख से बचने के सेंकड़ों उपाय करने पर भी दुखी ही बने रहेंगे और जब दुःख का विचार मनमें से निकाल कर दृढ़ संकल्प के साथ हर जगह सुख ही सुख में अपने आप को देखेंगे तो आपकी दशा में परिवर्तन हो जायगा और आपको अवश्य सुख मिलेगा। इस में कोई शक नहीं कि यदि आपकी इच्छा अनुचित और घृणित है और आप प्रकृति के प्रतिकूल जारहे हैं तो आप का प्रयास विफल होने की पूर्ण संभावना है परन्तु जबतकश्राप की इच्छा शुद्ध, उचित और प्रकृति के अनुकूल है आप अपने प्रत्येक इच्छित कार्य की सिद्धि एकात्रता पूर्वक चितवन के द्वारा करसकते है।

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